धर्मशाला की कांग्रेसी शिला को किस बात का है गिला…

गफूर खान। धर्मशाला

विधानसभा क्षेत्र धर्मशाला में कांग्रेस किस दिशा में जा रही है यह खुद कांग्रेसियों को भी इल्म नहीं है। 2012 में कांग्रेस ने दो हफ्ते से भी कम समय में एक नए चेहरे को जिताकर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया था। 2017 तक यहां कांग्रेस एकछत्र राज्य चला रही थी और प्रतीत यही हो रहा था कि कांग्रेस द्वारा स्थापित नेता रूपी शिला को अब कोई हिला भी नहीं पाएगा। लेकिन यह वहम ज्यादा समय तक कायम नहीं रहा और दो हफ्तों से भी कम समय में मेहनत से स्थापित की गई शिला हिल गई। यह शिला हिली ही नहीं बल्कि लुढ़की भी और ऐसी लुढ़की कि कई कांग्रेसियों के अरमानों को इसने पीसकर रख दिया। अब भी यह शिला थमी नहीं है और आए दिन कांग्रेसियों के अरमानों को कुचल रही है। कभी थम जाती है तो कई कांग्रेसियों की जान में जान आती है लेकिन अचानक ही शिला फिर से गतिमान हो जाती है और अरमानों को कुचलना शुरू कर देती है। इस शिला को कुछ तो गिला है जो ऐसा हो रहा है, लेकिन क्या है यह पता नहीं।

2017 की हार के बाद माथे पीटे, मंथन हुए और धरतीपुत्र की आवाज की खुसर-फुसर होने लगी लेकिन यह खुसर-फुसर तक ही सीमित रही। चुनाव हुए और नतीजा भी सबके सामने था, जो हुआ उससे कुछ कांग्रेसी आहत हुए तो कुछ खुश भी। सब 2022 की उम्मीद में थे और उम्मीद थी कि पार्टी दोबारा जीत दर्ज करेगी और जो कसर रह गई थी उसे पूरा कर दिया जाएगा। इसी बीच भाजपा हाईकमान ने धर्मशाला वासियों को चौंका दिया और कांग्रेसियों को दो साल के भीतर ही फिर से चुनाव में जाने का सौभाग्य भी मिल गया। अब नए-पुराने कांग्रेसी फिर से मंथन करने लगे और सबकी निगाहें अपने पुराने बनाए कीर्तिमान पर थीं और संभवत: उसी चेहरे के साथ चुनावी रण में जाने का पूरा मन था। लेकिन कांग्रेसियों के नेता ने उस वक्त जो सरप्रजाइज दिया वह भाजपा हाईकमान के सरप्राइज से भी बड़ा था। धर्मशाला में कांग्रेसी नेता के चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने की अटकलें ही लग रही थीं और नेता जी भी अटकलों को हवा देकर खूब मजे ले रहे थे। हाईकमान भी परेशान था कि आखिर करें क्या क्योंकि अपनी मर्जी का प्रत्याशी दिया तो हार तय थी और नेता जी का कोई ठोर नहीं था। आखिरकार ऐन वक्त पर नेता जी ने किनारा कर लिया और कांग्रेसियों को मझधार में छोड़कर खुद किनारे बैठकर तमाशा देखने लगे।

अब जब एक स्थापित नेता ने एकदम से किनारा किया तो टिकट के चाहवानों की फेहरिस्त लंबी हो गई और सभी अपनी टिकट फाइनल करवाने की जोर आजमाइश करने लगे। आखिरकार कांग्रेस हाईकमान ने लंबी माथापच्ची के बाद एक नाम फाइनल किया और बाकियों को भी मनाने का सिलसिला शुरू कर दिया। चुनाव प्रचार चला, खत्म हुआ और नतीजों ने कांग्रेस को ही खत्म कर दिया। जो पहले कभी नहीं हुआ वैसा ही अकल्पनीय कृत्य हुआ और दूसरी राजधानी में कांग्रेसी तीसरी पार्टी बनकर रह गई। इसके बाद फिर सियासत गरमाई और कांग्रेस प्रत्याशी ने अपने ही नेता पर पार्टी के खिलाफ कार्य करने के आरोप जड़ डाले। कांग्रेस सीधे तौर पर तीन गुटों में बंट गई, एक पुराने नेता की कांग्रेस, दूसरी नए प्रत्याशी के साथ चलने वाली कांग्रेस और तीसरी चुपचाप तमाशा देखकर मौके की तलाश में बैठी कांग्रेस। यह सिलसिल आज भी बदस्तूर जारी है।

मामला अब भी पेचीदा बना हुआ है क्योंकि नए चेहरे अब मैदान से हटने को तैयार नहीं हैं और पुराने वाले अपने पुराने तेवर दिखा रहे हैं। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ कि नेता जी से धर्मशाला से चुनाव लड़ने की बात पूछी तो उन्होंने इसे हाइकमान की मर्जी कहकर टाल दिया और जब उनकी मर्जी पूछी तो कुछ जवाब मिला नहीं। हाईकमान से तो इन्होंने पहले भी हाय-तौबा करवा दी थी। अब या तो 2022 के चुनावों में भी यह शिला कांग्रेसियों के सहारे फिर से स्थापित होगी या फिर कांग्रेसियों के अरमानों को ऐसे ही कुचलती रहेगी, इसका जवाब आने वाले वक्त में ही मिलेगा। हालांकि नेता जी ने अपने कुछ पुराने मित्रों की तारीफ भी की और यह भी कहा कि राजनीति में आई दरारें कब भर जाएं इसका पता नहीं चलता। यह अलग बात है कि अभी धर्मशाला की जनता को यह पता नहीं चल पाया है कि यह दरारें भर गई हैं या नहीं। जनता के जहन में तो सवाल अब भी वही है कि आखिर इस शिला को गिला क्या है…