कोरोना संकट की घड़ी, प्राइवेट अस्पतालों की मौज

कोरोना महामारी ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। हिमाचल में हालांकि सरकार ने कुछ ढील तो दे दी है, जिससे स्थिति कुछ हद तक सामान्य होती दिख रही है। लेकिन मौजूदा समय में सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य सेवाओं लेकर आ रही। कोरोना के मामले बढऩे के साथ ही सरकारी अस्पतालों में नाम मात्र की ओपीडी चल रही है। सिर्फ एमर्जेेंसी में ही मरीजों को ही देखा जा रहा है। वहीं दूसरी ओर संकट की इस घड़ी में प्राइवेट अस्पताल पैसों की उगाही में लगे हुए हैं, जिस पर सरकार की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कोरोना संकट के इस दौर में पूरे हिमाचल से अब तक हजारों मामले सामने आ चुके हैं। निजी अस्पताल आज इस संकटकालीन परिस्थिति को उत्सव के रूप में ले रहे हैं। यहां मरीज को एक-दो या तीन दिन से अधिक अस्पताल में रख कर भारी-भरकम बिल उनके परिजनों को थमाया जा रहा है। आखिर कोरोना के नाम पर निजी अस्पतालों की लूट कब तक चलती रहेगी और कब तक सरकारें आंखें मूंदकर बैठी रहेंगी। क्या जिम्मेदार पदों पर बैठे राजनेताओं को सिर्फ चुनावों के समय में ही जनता का दुख दर्द दिखता है। आखिर ऐसे अस्पतालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती। समस्या यह है कि निजी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े इन लोगों को राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त है। जिसके बदले में सत्ता में बैठे लोग पांच वर्षों तक मौन रहते हैं। पहले से ही बदहाल स्थिति में चल रही है सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना काल में बदतर स्थिति में चली गई हैं। ऐसे में आम जनमानस को किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए निजी स्वास्थ्य सेवाओं का रुख करना पड़ रहा है। जिसका खर्च वहन करना आम आदमी की पहुंच से बाहर है। इसलिए सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए कि गरीब और आम आदमी भी निजी अस्पताल में इलाज करवा सके।