CPRI शिमला ने आलू से बनाई जलेबी, आठ माह तक नहीं होगी खराब…

उज्जवल हिमाचल। शिमला

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) शिमला के वैज्ञानिकों ने आलू की स्वादिष्ट और कुरकुरी जलेबी तैयार की है। अभी तक सिर्फ आलू के चिप्स, फ्रेंच फ्राई, कुकीज और दलिया ही बनते थे, लेकिन अब आलू की स्वादिष्ट और कुरकुरी जलेबी भी उपभोक्ताओं को खाने के लिए उपलब्ध होगी। इस आलू जलेबी का स्वाद आठ महीने तक नहीं बिगड़ेगा और इसे चाशनी में डुबाकर इसका आनंद लिया जा सकता है।

सीपीआरआई के वैज्ञानिकों ने देश में उगाए जाने वाले किसी भी किस्म के आलू का इस्तेमाल करके जलेबी बनाने का तरीका खोज लिया है। बाजार में मिलने वाली मैदे की जलेबी को ज्यादा दिन तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। इसे 24 घंटों के भीतर उपयोग करने की अनुशंसा की जाती है। नहीं तो मैदे के जलेब का स्वाद खराब हो जाता है और सेहत पर बुरा असर पड़ता है। आलू से बनी जलेबी में यह समस्या नहीं होती है और इसे आठ महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके स्वाद और कुरकुरेपन में कोई अंतर नहीं है।

सीपीआरआई के वैज्ञानिकों ने आलू से जलेबी बनाने के फार्मूले का पेटेंट भी करा लिया है। यानी आलू जलेबी का फॉर्मूला बेचकर संस्थान अतिरिक्त कमाई भी कर सकेगा। जलेबी की बिक्री के लिए नामी कंपनियों के साथ करार किया जा रहा है। आलू जलेबी के लिए आईटीसी जैसी नामी कंपनियों से बातचीत चल रही है, ताकि डिब्बाबंद जलेबी परोसी जा सके।

छिलके वाले आलू का होता है इस्तेमाल: डॉ. जायसवाल

संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. अरविंद जायसवाल का कहना है कि आलू की जलेबी बनाने में छिलके के साथ-साथ आलू का भी इस्तेमाल किया जाता है। छिलका फाइबर से भरपूर होता है और आलू का स्टार्च जलेबी में कुरकुरापन जोड़ता है। उनका कहना है कि उपभोक्ताओं को आलू की जलेबी का इस्तेमाल चाशनी बनाकर करना होगा। इसी वजह से बड़ी-बड़ी नामी कंपनियों से बातचीत की जा रही है, ताकि उपभोक्ताओं को डिब्बाबंद आलू जलेबी का इस्तेमाल करने में ज्यादा समय न लगे। यह जलेबी आठ महीने तक नहीं खराब होगी।