देहरा जिला बनने का हर मापदंड करता है पूरा : मुनीष धीमान

अनुराग ठाकुर। नगरोटा सूरियां

प्रदेश में नए जिला बनाने की अटकलें जैसे-जैसे तेज हो रही हैं, उसी तरह हर वह क्षेत्र जहां के निवासी अपने क्षेत्र को जिला मुख्यालय से दूर तथा सरकार द्वारा दी जाने वाली आधारभूत सुविधाओं से वंचित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र को जिला बनाने की आवाज और भी तेज कर दी है। समय के साथ जैसे जनसंख्या बढ़ी है, तो उस हिसाब से बढ़िया तरीके से हर नागरिक तक प्रशासनिक सेवाएं एवं सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके उसके लिए नए जिला बनाना जरूरी हैं। हिमाचल के जिन क्षेत्रों को जिला बनाने की जो बात चल रही है वह वाजिब है, पर आज के संदर्भ में जो क्षेत्र सबसे ज्यादा जिला बनने के लिए डिसर्व करता है, वह है देहरा।

इसके कई कारण है, पर मूलत: जिला बनाने के लिए जो क्षेत्र में योग्यताएं होनी चाहिए, उनमें से मुख्य चार बिंदुओं पर अगर बात करें, तो देहरा उन सभी योग्यताओं को अच्छी तरह से पूरा करते हुए, अगर राजनीतिक भेदभाव न किया जाए, तो जिला बनने की फेरहिस्त में सबसे ऊपर प्रथम स्थान पर है। सबसे पहला बिंदु , डेमोग्राफी या जनसंख्याः जनसंख्या के आधार पर अगर हमारे प्रदेश के जिलों को बांटा जाए, तो हर जिला में 5 से 6 विधानसभा क्षेत्र होने चाहिए, बर्फीले और पहाड़ी होने की वजह से कहीं विधानसभा क्षेत्र कम हो सकते हैं, पर जब हम पंजाब से लगने वाले कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना की बात करें, तो इन क्षेत्रों में 5 से 6 विधानसभा क्षेत्र एक जिला का प्रारूप देने के लिए काफी हैं।

कांगड़ा के 15 विधानसभा क्षेत्रों में से कम से कम तीन और ज्यादा से ज्यादा चार जिला निकाले जा सकते हैं, जिनमें देहरा, नूरपुर व कांगड़ा मुख्य तौर पर तीन, जबकि सरकार अगर चाहे तो पालमपुर को भी जिला का दर्जा देकर, वर्तमान में राजनीतिक पार्टियों द्वारा बनाए गए संगठनात्मक जिलों की तर्ज़ पर 4, 4, 4 व 3 विधानसभा क्षेत्र में भी बांट सकते हैं। दूसरा मुख्य बिंदु, टोपोग्राफी या प्राकृतिक संरचना मुख्यतः सरकार को जब भी जिला का गठन करना चाहिए, उसमें एक जैसी प्राकृतिक संरचना वाले क्षेत्र को एक जिला बनाने चाहिए। धर्मशाला और उसके आसपास के क्षेत्र थोड़ा पहाड़ी क्षेत्र हैं, जिनमें ज्यादातर बरसात और ठंड रहती है, जबकि धौलाधार से नीचे उतरते ही बनेर पर बने बाथु पुल से पश्चिमी क्षेत्र की प्राकृतिक संरचना बदल जाती है।

रानीताल रसूह चौक को अगर पूर्वी सिरा माने तो उत्तर में वनेर खड्ड तथा पश्चिमी में चंबा पत्तन से निकलती ब्यास तथा दक्षिण में पौंग जलाशय इस सारे क्षेत्र की प्राकृतिक संरचना एवं भगौलिक स्थिति ऊपरी क्षेत्र से भिन्न है। तीसरा बिंदु, एतिहासिक एवं धार्मिक धरोहरः देहरा हिमाचल की सबसे पुरानी तहसील तो है ही पर इसके अलावा ज्वालामुखी, चिन्तपूर्णी, बगलामुखी, पुराणिक मंदिर मसरूर, पौंग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, रैंसर बैटलैंड तथा पौंग जलाशय, धरोहर गांव प्रागपुर आदि कुछ एक ऐसी मुख्य संपत्तियां हैं, जिनके विकास की अभूतपूर्व संभावनाएं हैं। इनसे होने वाली आमदनी ही क्षेत्र की आत्मनिर्भरता एवं यहां के बाशिंदों के जीवन-यापन का स्तर उठाने के लिए जरूरत से ज्यादा हैं।

क्षेत्र की एतिहासिक एवं धार्मिक धरोहर का विकास क्षेत्र में जिला मुख्यालय बनाकर विशेष ध्यान देकर ही किया जा सकता है। चौथा बिंदु, कृषि उत्पादन नूरपुर क्षेत्र में आम, संतरा धर्मशाला व पालमपुर में चाय आदि की फसल ज्यादा होती है, तो हल्दून घाटी की तलहटी के साथ लगने वाले क्षेत्र में मुख्य तौर पर गेहूं, मक्का, मांश व तिलहन आदि की फ़सल बहुतायत में होती है। वर्तमान में धर्मशाला मुख्यालय कृषि बजट के खर्च का मुख्य बिंदु हॉर्ल्टिकल्चर एवं चाय उत्पादन पर रहता है, जबकि देहरा जिला बनने से बजट का मुख्य हिस्सा खरीफ और रबी की फसलों के उत्पादन पर होगा, जो इस क्षेत्र की जरूरत है। इसके अलावा और भी बहुत सारे कारण हैं, जो देहरा को जिला बनाने के हर मापदंड पर अग्रणी खड़ा करते हैं। सरकार को बिना किसी राजनीतिक भेदभाव से देहरा को जिले का स्वरुप देकर चिरकाल से चली मांग को तरजीह देनी चाहिए।