कुंडली के सभी भावों में शनि का प्रभाव और उपाय एवं टोटके

उज्जवल हिमाचल। डेस्क…

शनि ऐसा ग्रह है जिसके प्रति सभी का डर सदैव बना रहता है। आपकी कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे आपके पूरे जीवन की दिशा, सुख, दुख आदि सभी बात निर्धारित हो जाती है।शनि को कष्टप्रदाता के रूप में अधिक जाना जाता है। किसी ज्योतिषाचार्य से अपना अन्य प्रश्न पूछने के पहले व्यक्ति यह अवश्य पूछता है कि शनि उस पर भारी तो नहीं। भारतीय ज्योतिष में शनि को नैसर्गिक अशुभ ग्रह माना गया है। शनि कुंडली के त्रिक (6, 8, 12) भावों का कारक है। पाश्चात्य ज्योतिष भी है। अगर व्यक्ति धार्मिक हो, उसके कर्म अच्छे हों तो शनि से उसे अनिष्ट फल कभी नहीं मिलेगा। शनि से अधर्मियों व अनाचारियों को ही दंड स्वरूप कष्ट मिलते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार शनि की कांति इंद्रनीलमणि जैसी है। कौआ उसका वाहन है। उसके हाथों में धनुष बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा हैं। शनि का विकराल रूप भयानक है। वह पापियों के संहार के लिए उद्यत रहता है।

शास्त्रों में वर्णन है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी और पुरुष प्रधान ग्रह है। इसका वाहन गिद्ध है। शनिवार इसका दिन है। स्वाद कसैला तथा प्रिय वस्तु लोहा है। शनि राजदूत, सेवक, पैर के दर्द तथा कानून और शिल्प, दर्शन, तंत्र, मंत्र और यंत्र विद्याओं का कारक है। ऊसर भूमि इसका वासस्थान है। इसका रंग काला है। यह जातक के स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है। यह मकर और कुंभ राशियों का स्वामी तथा मृत्यु का देवता है। यह ब्रह्म ज्ञान का भी कारक है, इसीलिए शनि प्रधान लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हैं।

शनि सूर्य का पुत्र है। इसकी माता छाया एवं मित्र राहु और बुध हैं। शनि के दोष को राहु और बुध दूर करते हैं।
शनि दंडाधिकारी भी है। यही कारण है कि यह साढ़े साती के विभिन्न चरणों में जातक को कर्मानुकूल फल देकर
उसकी उन्नति व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। कृषक, मजदूर एवं न्याय विभाग पर भी शनि का अधिकार होता है। जब गोचर में शनि बली होता है तो इससे संबद्ध लोगों की उन्नति होती है।

शनि भाव 3, 6,10, या 11 में शुभ प्रभाव प्रदान करता है। प्रथम, द्वितीय, पंचम या सप्तम भाव में हो तो अरिष्टकर होता है। चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर प्रबल अरिष्टकारक होता है। यदि जातक का जन्म शुक्ल पक्ष की रात्रि में हुआ हो और उस समय शनि वक्री रहा हो तो शनिभाव बलवान होने के कारण शुभ फल प्रदान करता है। शनि सूर्य के साथ 15 अंश के भीतर रहने पर अधिक बलवान होता है। जातक की 36 एवं 42 वर्ष की उम्र में अति बलवान होकर शुभ फल प्रदान करता है। उक्त अवधि में शनि की महादशा एवं अंतर्दशा कल्याणकारी होती है।
शनि की दृष्टि अशुभ मानी गई है इनकी अपने से तीसरी, सातविं और दशवें स्थान पर पूर्ण दृष्टि होती है।
शनि किस भाव में है और उसके क्या फल है, जानिएं…

  • प्रथम भाव/लग्न में शनि हो तो…

जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि प्रथम भाव में हो वह व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है। यदि शनि अशुभ फल देने वाला है तो व्यक्ति रोगी, गरीब और बुरे कार्य करने वाला होता है। जिन जातकों के जन्म काल में शनि वक्री होता है वे भाग्यवादी होते हैं। उनके क्रिया-कलाप किसी अदृश्य शक्ति से प्रभावित होते हैं। वे एकांतवासी होकर प्रायः साधना में लगे रहते हैं।धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि में शनि वक्री होकर लग्न में स्थित हो तो जातक राजा या गांव का मुखिया होता है और राजतुल्य वैभव पाता है।

जिस जातक की कुंडली में दुसरे घर में शनिहो , वह लकड़ी संबंधी व्यापार ,कोयला एवंलोहे के व्यापार में धन अर्जित करता हैं । उसे निंदित कार्यो तथा साधनों से प्रचुरसंपाति प्राप्त होती हैं । वह श्रेष्ठ व बिना स्वीकारी जाने वाली विधाओ का अध्यनकरता हैं ।
2. दूसरे भाव में शनि से जातक निर्धन होता हैं । आंखो की बीमारियाँ उसे कष्ट देती रहेगी । ऐसे जातक के दो विवहा भी होसकते हैं । जातक किसी धार्मिक स्थान का कर्ता – धर्ता होता हैं । और स्त्री वर्गको मूर्ख बनाकर धन इकट्टा कर्ता हैं ।
जातक को राजकीयअनुकंपा भी मिलती हैं । दूसरे भाव में शनि जातक को परिवार से दूर कर्ता हैं । ऐसाजातक सुख साधन – समार्धी की खोज में दूर देश – विदेश की यात्रा कर्ता हैं ।
उसकाभाग्य उदय पैत्रक निवास से दूर होता हैं ।
5. जातक झूठ बोलने बाला , चंचल , बातूनी तथा दूसरों को मूर्ख बनाने में अच्छाहोता हैं ।
6. ऐसा जातक पिता के साथ रह कर धन कभी अर्जित कभी नहीं करसकता ।
7. यदि शनि दूसरे घर में होतो जातक का चेहरा अच्छा न होगा ।
8. ऐसा जातक को किसी न किसी प्रकार के नशे(पान , सिगरेट , शराब आदि ) की आदत होती हैं ।

तीसरे भाव

अगर कुंडली में तीसरे भाव में शनि होतो जातक बुद्धिमान औरउदार होता हैं , तथा इसे स्त्री का सुख भी प्राप्त होता हैं , किंतु वह आलस्य से भरपूर मलिन देह वाला , नीचप्रवर्ती का होता हैं । चित में अशांति ऐसे शनि के प्रभाव हैं ।तृतीय भाव का वक्री शनि जातक को गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता बनाता है, लेकिन माता के लिए अच्छा नहीं होता है।
2. आपने लोगो से संघर्षपूर्ण स्थितियो और कठोर परिश्रम के बादभी मिलने वाली असफलता जातक को परेशान करती हैं ।
3. सोभाग्य के उदय में विभिन्न बधाये प्रकट होती हैं ।
4. अनेक लोग अवलंबित रहते हैं । भाइयो से तनावपूर्ण संबंध रहतेहैं और कलेश प्राप्त होता हैं ।
5. तीसरे भाव क शनि कुंडली जब होते हैं तब जातक को माता पितासे मात्र आशीर्वाद क अलावा और कुछ प्राप्त नहीं होता ।
6. पुरुष राशि में शनि तीसरे भाव में संतान जल्दी होती हैं , परंतुगर्भपात की समभावनए प्रबल रहती हैं ।
7. पाप ग्रह युक्त शनि से भइयो का अहित करता हैं । पापयुक्तशनि से भाई जातक से द्वेष रखने वाले होगे ।

चतुर्थ भाव 

यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में होतो जातक गृहहीन औरमाता नहीं होती या उसको कष्ट होता हैं । ऐसा व्यक्ति बचपन में रोगी भी रहता है । यह भाव सुख का भाव माना जाता हैं । अतः इधर शनिबैठ कर सुख को नष्ट करता है । इसी कारण जातक सदा दुखी रहता है ।
चतुर्थ भावस्थ शनि मातृ हीन, भवन हीन बनाता है। ऐसा व्यक्ति घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी नहीं निभाता और अंत में संन्यासी बन जाता है। लेकिन, चतुर्थ में शनि तुला, मकर या कुंभ राशि का हो तो जातक को पूर्वजों की संपत्ति प्राप्त होती है।
2. जातक तथा उसके माता – पिता के मध्य हमेशा कलह रहती हैं । जातकबंधु विरोध तथा झूठे आरोपो से दुखी रहता है।
3. चौथे भाव में शनि पित्त तथा वायु विकार से ग्रस्त रखता है ।
4. चौथे घर में शनि से अनुमान लगाया जाता है की माता की मृत्यु पिता से पहले होती है ।
5. अभिभावक से जातक के विचार और सोच एक दूसरे से विरुद्ध होते है ।
6. मेष , वृष, सिंह , तुला , धनु , व्बृश्चिक , मीन और मिथुन वालों को सरकारी सेवाए प्रदान करता है ।
7. जातक की रुचि वैज्ञानिकविषयों में होती हैं ।
8. जातक को व्यापार के प्रारम्भ में अनेक घोर संकट प्रकट होते है।
9. जातक का 36वें तथा 56वें वर्ष उत्तम होते है ।
10. पश्चिम दिशा प्रगति के अनुकूल होती है ।
11. शनि अपनी राशि या अपनीउच्च राशि पर होतो दोषो का परिहार हो जाता है ।
पैत्रिक स्थान त्यागने पर भीजातक की दुर्भाग्य से मुक्ति नहीं मिल पाती ।

पंचम भाव में शनि का प्रभाव….

पंचम भाव का वक्री शनि प्रेम संबंध देता है।लेकिन जातक प्रेमी को धोखा देता है। वह पत्नी एवं बच्चे की भी परवाह नहीं करता है।
1. पांचवे भाव में शनि के बारे फलदीपिका में बताया गया है कीऐसा जातक शैतान और दुष्ट बुद्धि वाला होता है । तथा ज्ञान , सुत , धन तथा हर्ष इन चारों से रहित होता है अर्थात इनके सुख में कमी करता है ।
2. ऐसा जातक भ्रमण करता है अथवा उसकी बुद्धि भ्रमित रहती है ।
3. अगर पंचम भाव में शनि हो तो वह आदमी ईश्वर में विश्वास नहींकरता और मित्रों से द्रोह करता है तथा पेट पीड़ा से परेशान , घूमनेवाला , आलसी और चतुर होता है ।
4. जिनके पंचम भाव में शनि होता है , उसकादिमाग फिजूल विचारों से ग्रस्त रहता है ।
5. व्यर्थ की बातों में वह अधिक दिमाग खपाता है एवं मंदमती होताहै । आय से ज्यादा खर्च अधिक करता है ।
6. यदि शनि उच्च का होकर पंचम हो तो जातक के पैरों में कमजोरी लादेता है ।
7. पीड़ित शनि लॉटरी , जुआ , सट्टा , अथवा रेस के माध्यम से धन की हानि करता हैं ।
8. मेष , सिंह , धनु राशि का शनि, जातक में अहम का उदय करता है । जातक अपने विचारों को गोपनीयरखता है ।
9. अनिश्चित वार्तालाप का आदी होता है । जातक किसी प्रकार की स्वार्थसिद्धिमें कुशल होता है ।
10. ऐसे जातक बैंक , जिला परिषद , सामाजिकसंस्था , विधानसभा , संसद एवं रेलवे आदिमें अधिकारी होते है ।

षष्ठ भाव में शनि हो तो…..

जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि छठे भाव में हो तो वह कामी, सुंदर, शूरवीर, अधिक खाने वाला, कुटिल स्वभाव, बहुत शत्रुओं को जीतने वाला होता है।षष्ठ भाव का वक्री शनियदि निर्बल हो तो रोग, शत्रु एवं ऋण कारक होता है।

सप्तम भाव में शनि हो तो……

सप्तम भाव का शनि होने पर व्यक्ति रोग, गरीब, कामी, खराब वेशभूषा वाला, पापी, नीच होता है।सप्तम भाव का वक्री शनि पति या पत्नी वियोग देता है।यदि शनि मिथुन, कन्या, धनु या मीन का हो तो एक से अधिक विवाहों का योग बनता है या केतु शनि के साथ हो तो दो दो पत्नियाँ साथ मे रखता है

अष्टम भाव में शनि हो तो…..

अष्टम भाव में शनि होने पर व्यक्ति कुष्ट या भगंदर रोग से पीडि़त, दुखी, अल्पायु, हर कार्य को करने में अक्षम होता है।अष्टम भाव में शनि हो तो जातक ज्योतिषी दैवज्ञ, दार्शनिक एवं वक्ता होता है। ऐसा व्यक्ति तांत्रिक, भूतविद्या,काला जादू आदि से धन कमाता है।

नवम भाव में शनि हो तो…..

ऐसा व्यक्ति जिसकी कुंडली में नवम भाव में शनि हो वह अधार्मिक, गरीब, पुत्रहीन, दुखी होता है।नवमस्थ वक्री शनि जातक की पूर्वजों से प्राप्त धन में वृद्धि करता है। उसे धर्म परायण एवं आर्थिक संकट आने पर धैर्यवान बनाता है।

दशम भाव में शनि हो तो…..

दशम भाव का शनि होने पर व्यक्ति धनी, धार्मिक, राज्यमंत्री या उच्चपद पर आसीन होता है।दशमस्थ शनि वक्री हो तो जातक वकील, न्यायाधीश,बैरिस्टर, मुखिया, मंत्री या दंडाधिकारी होता है।

एकादश भाव में शनि हो तो….

जिस व्यक्ति की कुंडली में ग्याहरवें भाव में शनि हो वह लंबी आयु वाला, धनी, कल्पनाशील, निरोग, सभी सुख प्राप्त करने वाला होता है।एकादश भाव का शनि जातक को चापलूस बनाता है। व्यय भावस्थ वक्री शनि निर्दयी एवं आलसी बनाता है।

द्वादश भाव में शनि हो तो…..

बाहरवें भाव में शनि होने पर व्यक्ति अशांत मन वाला, पतित, बकवादी, कुटिल दृष्टि, निर्दय, निर्लज, खर्च करने वाला होता है।

संग्रह कर्ता पंडित मनोज सेमवाल
गढ़वाली ज्योतिषी
नादौन