बारिश की हर बूंद को सहेजने के लिए धरातल पर करने होंगे प्रयास: कैप्टन संजय

-कहा, वर्षा जल संग्रहण के लिए योजनाओं में होना चाहिए इजाफा

उज्जवल हिमाचल। डाडासीबा

कैप्टन संजय ने कहा है कि वर्षा के जल का संचयन के लिए धरातल पर काम करने की आवश्यकता है। मानसून में करोड़ों लीटर बारिश के पानी का संग्रहण नहीं हाे पाता है। ऐसे में बारिश की हर बूंद को सहेजने के लिए जहां तंत्र को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे, वहीं आमजनमानस को भी इस कार्य के लिए जागरूक करना होगा।

शनिवार को जसंवा-परागपुर क्षेत्र की मूंही पंचायत में जनसंवाद कार्यक्रम में पराशर ने कहा कि मानसून में बरसे पानी को सुरक्षित रखने के लिए चेक बांधों का बड़े स्तर पर निर्माण किया जा सकता है। साथ ही तालाबों, पोखरों और कुओं व बावड़ियों के जीर्णोद्धार पर भी ध्यान देना होगा।

संजय ने कहा कि वर्षा का जल संग्रहण कितना जरूरी है, इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन वर्ष पूर्व बकायदा पंचायत प्रतिनिधियों को पत्र तक लिखा था। लेकिन सच यही है कि जल संचयन को लेकर अभी तक जो गंभीरता से प्रयास होने चाहिए थे, वे नजर नहीं आते हैं। पराशर ने कहा कि कभी तालाब और कुएं इस क्षेत्र के जनजीवन के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं। क्षेत्र के स्थानीय वासियों का इन पांरपरिक जल स्त्रोतोंं से भावनात्मक लगाव गहरा था।

यही कारण है कि जल को देवता मानकर इसके प्रतीक रूप में तालाबों और कुओं की पूजा आज भी समाज में प्रचलित है। संजय ने कहा कि विरासत में मिली ये धरोहरें आज उपेक्षा की शिकार हैं। विकास की गति में जीने की पद्धति बदली तो यह स्त्रोत भी लावारिस होकर रह गए। देखरेख व संरक्षण के अभाव में तालाब की दशा भी चिंताजनक है।

संजय ने कहा कि पहले गांवों और कस्बों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप से मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। इसके साथ ही अनुपयोगी जल भी तालाब में एकत्र हो जाता था, जिसे मछलियां और मेंढ़क आदि साफ करते रहते थे। यह जल पूरे गांव के पशुओं आदि के काम में आता था। जरूरी है कि गांवों और कस्बाें में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए।

संजय ने कहा कि यह भी शोध का विषय है कि अधिकतर तालाबों पर पैसा खर्च होने के बाद पानी नहीं टिक पा रहा है। इसके क्या कारण रहे हैं और कैसे तालाबों में पानी को फिर से संरक्षित किया जा सके, की दिशा में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काम करना होगा। जसवां-परागपुर क्षेत्र में कई बड़ी खड्डें हैं। इन खड्डों पर चेक बांधों का निर्माण हो सकता है और मनरेगा के तहत भी इस कार्य को किया जा सकता है।

चेक बांध के पानी का उपयोग किसानों के खेतों में सिंचाई सुविधा के लिए किया जा सकता है। पानी को लिफ्ट करके खेतों तक पहुंचाने की योजना पर अगर काम हो तो निश्चित तौर पर किसानों की रूचि फिर से कृषि में बढ़ेगी। पराशर ने कहा कि चेक बांधों का बड़े पैमाने पर निर्माण करवाने के बाद जहां मानसून के पानी को बेकार नहीं होने दिया जाएगा, वहीं, मछली उत्पादन और आसपास के पौधरोपण से स्थानीय वासियों की आय भी बढ़ेगी।