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Saturday, May 4, 2024
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इमोशनल कर देगी गुडबाय की कहानी

Emotional will make the story of goodbye
इमोशनल कर देगी गुडबाय की कहानी

डेस्क:- जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है। जन्मदिन पर क्या करना है, इसके बारे में तो खूब योजनाएं बनाई जाती हैं। लेकिन इस दुनिया को कैसे अलविदा कहना है, इसकी योजना भला कौन बनाता है। इसी के आसपास निर्देशक और लेखक विकास बहल ने फिल्म गुडबाय की कहानी रची है। मुंबई में रह रही वकील तारा (रश्मिका मंदाना) अपना पहला केस जीतने की खुशी में पार्टी कर रही होती है। मां का कॉल आता है, लेकिन वह काट देती है। अगले दिन पता चलता है कि चंडीगढ़ में रह रही, उसकी मां गायत्री भल्ला (नीना गुप्ता) का निधन हो गया है।

रीति-रिवाज आस्था हैं या विज्ञान

उसके पिता हरीश भल्ला (अमिताभ बच्चन) उससे नाराज हैं। जब वह घर पहुंचती है, तो वहां गायत्री के शव के नाक में रूई डालकर, पैरों के अंगूठों को आपस में बांधकर लिटाया गया है। तारा को यह सब रीति-रिवाज पसंद नहीं आते हैं। वह पिता से कहती है कि इसमें कोई लॉजिक नहीं है। पिता कहता है कि यह रीति-रिवाज हजारों साल से चले आ रहे हैं। गायत्री के तीन और बेटे हैं। बड़ा बेटा करण (पावेल गुलाटी) अपनी पत्नी डेजी (एली अवराम) के साथ अमेरिका से लौटता है। गोद लिया बेटा अंगद (साहिल मेहता) दुबई से आता है। तीसरा बेटा नकुल (अभिषेक खान) पर्वतारोही है, वह सारी रस्में खत्म होने पर पहुंचता है। क्या इन रीति-रिवाजों में कोई लॉजिक है या फिर यह विज्ञान है, जिसे आस्था से जोड़ा जा रहा है।

कई जगह इमोशनल करती है गुडबाय

एक बिंदू पर लगता है कि अब फिल्म को खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन उसके बाद तीसरे बेटे की एंट्री होने की वजह से फिल्म और लंबी हो जाती है। कुछ तस्वीरों के जरिए युवा हरीश के गायत्री को प्रपोज करने वाले सीन दिखाए गए हैं। उसमें युवा अमिताभ की तस्वीरों को देखना दिलचस्प है। गायत्री की मौत के बाद उनके बच्चों का अपनी मम्मी के नंबर पर मैसेज करने के बारे में सोचना, हरीश का पत्नी की मौत के तुरंत बाद बैठकर अंतिम संस्कार के सामानों की लिस्ट बनाना, अस्थियां बहाने से पहले पत्नी की अस्थियों से बात करना कि इन रस्मों में वक्त ही नहीं मिला बात करने का, घर के डॉग का मालकिन के लिए उदास होना, यह दृश्य भावुक करते हैं।

रश्मिका मंदाना ने किया बॉलीवुड डेब्यू

अंतिम संस्कार में शामिल होने आई गायत्री की दोस्तों का उसकी याद में वाट्सअप ग्रुप के नाम पर चर्चा करना हो, चाय का कप उठाते हुए पीपी का कहना कि चूल्हा नहीं जल सकता है, लेकिन चाय ठीक है या किसी पारिवारिक मित्र या सदस्य का बिना बुलाए आगे बढ़कर सारी रस्में समझाने का ठेका ले लेना, वास्तविकता के करीब ले जाता है।अमिताभ बच्चन अपनी अदायगी से एक बार फिर फिल्म को अपने नाम कर लेते हैं। नीना गुप्ता की पर्दे पर मौजूदगी चेहरे पर मुस्कान ले आती है। रश्मिका मंदाना की यह हिंदी डेब्यू फिल्म है। उनका हर चीज के पीछे लॉजिक ढूंढने का कारण समझ नहीं आता है। हालांकि उन्होंने स्क्रिप्ट के दायरे में अच्छा काम किया है।

अमित त्रिवेदी का संगीत है दमदार

पावेल, साहिल और आशीष विद्यार्थी अपने किरदारों में जंचते हैं। सुनील ग्रोवर पंडित की छोटी सी भूमिका में प्रभावित करते हैं। एली अवराम के हिस्से कुछ खास संवाद नहीं आए हैं। चुस्त संपादन से कुछ गाने कम करके फिल्म की अवधि को एडिटर श्रीकर प्रसाद कम कर सकते थे। अमित त्रिवेदी का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है। स्वानंद किरकिरे का लिखा गाना “जयकाल, महाकाल” गाना रोंगटे खड़े कर देता है।
उज्जवल हिमाचल ब्यूरो। 

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