सराज के प्रसिद्ध ‘त्रिलोकी राजमाश’ की अब होगी जीआई टेगिंग

उमेश भारद्वाज। मंडी
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह विधानसभा क्षेत्र सराज के प्रसिद्ध हल्के पीले रंग के ‘त्रिलोकी राजमाश’ की अब जीआई(GI) टेगिंग होने जा रही है। इसको लेकर कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर द्वारा प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। ये बात कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रोफेसर हिरेंद्र कुमार चौधरी ने मीडिया से बातचीत के दौरान कही।
बता दें कि प्रदेश की लाहुल घाटी में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 1989 से त्रिलोकी राजमाश का संवर्धन किया जा रहा है। प्रोफेसर हिरेंद्र कुमार चौधरी द्वारा सराज क्षेत्र में उगने वाले पारंपरिक किस्म की विभिन्न प्रजातियों के राजमाश इक्ट्ठा किए गए। इस दौरान हिरेंद्र चौधरी को जंजैहली क्षेत्र के हल्के पीले रंग का राजमाश मिला, जिसका शोध किया गया।
इसके उपरांत इसके संवर्धन कर इसे त्रिलोकी राजमाश से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। राजमाश की इस प्रजाति पर 9 वर्ष तक शोध करने के बाद 1998 में इसे त्रिलोकी राजमाश के तौर पहचान मिली। इसे आजतक किसानों द्वारा अपने खेतों में उगाकर मुनाफा कमाया जा रहा है और प्रति हेक्टेयर में लगभग 22 क्विंटल तक पैदावार होती है।
क्या है ‘जीआई टेगिंग’?
किसी भी जगह का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर कहते हैं।
जीआई टैग किसी क्षेत्र के उत्पाद की उत्पत्ति को पहचानने के लिए एक संकेत या प्रतीक है। इसकी मदद से कृषि, प्राकृतिक या निर्मित वस्तुओं की अच्छी गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सकता है। किसी क्षेत्र विशेष के उत्पादों को जीआई (GI) टैग से खास पहचान मिलती है।

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