यहां होती है भगवान राम की बहन शांता की पूजा

मनीष ठाकुर। कुल्लू

देशभर में जहां भगवान राम के मंदिर के भूमि पूजन पर लोगों में खुशी का माहौल है। वहीं, जिला कुल्लू में भी लोग इस बात से काफी खुश है। वहीं, भगवान राम की बड़ी बहन शांता के घर में भी इस बात को लेकर खुशी का माहौल बना हुआ है। हालांकि अधिकतर लोग भगवान राम व उनके तीन भाइयों के बारे में ही जानते हैं। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि भगवान राम की एक बड़ी बहन भी थी, जिसका नाम शांता था और उनकी शादी श्रृंगा ऋषि के साथ की गई थी।

हिमाचल प्रदेश के कुल्लु जिला के बंजार के बागा में इनको समर्पित एक अनोखा मंदिर भी स्थापित है। जहां इनके भक्त विधि-विधान से इनका पूजन करते हैं। मान्यता अनुसार इस मंदिर में जिस देवी की पूजा की जाती है, वे और कोई नहीं, बल्कि भगवान राम की बड़ी बहन है, जिनका नाम है शांता। बंजार की चेहनी कोठी के बागा में स्थित एक मंदिर में देवी शांता की प्रतिमा उनके पति शृंग ऋषि के साथ विराजमान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृंगा ऋषि, ऋषि विभंडक के पुत्र थे।

श्रृंगा ऋषि वहीं थे, जिन्होंने दशरथ जी की पुत्र कामना के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाया था। जिस स्‍थान पर उन्होंने यज्ञ किया था, वह जगह अयोध्‍या से करीब 39 किलाे मीटर पूर्व में थी और वहां आज भी उनका आश्रम है। देवी शांता को लेकर मान्यता प्रचलित है कि राजा दशरथ ने अंगदेश के राजा रोमपद को अपनी बेटी शांता गोद दे दी थी, जब रोमपद पत्नी के साथ अयोध्‍या आए, तो राजा दशरथ को मालूम चला कि उनकी कोई संतान नही हैं। तब राजा दशरथ ने शांता को उन्हें संतान स्वरूप दिया।

इस मंदिर में भगवान श्रीराम से जुड़े सभी उत्सव जैसे राम जन्मोत्सव, दशहरा आदि बड़े ही धूम-धाम से मनाए जाते हैं। मान्यता के अनुसार देवी शांता और उनके पति की पूजा करने से भक्तों पर भगवान श्रीराम की विशेष कृपा होती है। श्रीराम की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। हम यहां आपको शांता के बारे में बताएंगे। राम की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था। भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं।

इस संबंध में कुछ कथाएं भी प्रचलित हैं
वर्षिणी नि:संतान थीं तथा एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। दशरथ भी मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं। लोककथा अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्‍या में अकाल पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शां‍ता ही अकाल का कारण है।

राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शां‍ता कभी अयोध्‍या नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए। शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ था।

एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। अपने भक्‍त की बेइज्‍जती पर गुस्‍साए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्‍न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया। राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी।

दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया। पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। लेकिन दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया, लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता।

मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए, लेकिन जब पुत्र की कामना से पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के दौरान उन्‍होंने अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शां‍ता के बिना आने से इनकार कर दिया। तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे।

शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि ‘हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।’ जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि ‘वो उनकी पुत्री शांता है।’ दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था। दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से भगवान राम तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ।