फसल किसी भी कारण से हो बर्बाद, किसानों को मिलना चाहिए मुआवजा: कैप्टन संजय

कहा, फॉल आर्मी वार्म बीमारी भी एक तरह की है प्राकृतिक आपदा

उज्जवल हिमाचल। चिन्तपूर्णी

कैप्टन संजय ने कहा है कि जसवां-परागपुर क्षेत्र में किसानों की फसल को फॉल आर्मी वार्म नामक कीट नष्ट कर रहा है, लेकिन विडंबना यह है कि फसल बीमा योजना के तहत इस बीमारी के कारण हुए नुकसान का मुआवजा किसानो को नहीं मिल पाता है। इंश्योरेंस कंपनी ने जसवां-परागपुर के किसानों को पिछले वर्ष भी बर्बाद हुई फसल की बीमित राशि को इस कारण देने से इंकार कर दिया था क्योंकि यह रोग स्थानीयकृत जोखिमों में शामिल ही नहीं किया गया है।

क्षेत्र की स्यूल पंचायत में जनसंपर्क अभियान के तहत पराशर ने कहा कि क्षेत्र की रैल पंचायत के गांव डडोआ गांव के किसान इस अव्यवस्था के बड़ा उदाहरण हैं, जिन्हें फसल का बीमा करवाने के बाद भी कोई पैसा नहीं मिला। संजय ने कहा कि किसानों की फसल किसी भी कारण से नष्ट हुई, उन्हें समय पर उचित मुआवजा मिलना चाहिए। क्षेत्र के कई किसानों ने पिछले वर्ष मक्की की फसल का बीमा करवाया था तो जिन किसानों ने किसान क्रेडिड कार्ड से लोन लिया था, उनकी बीमा राशि बैंक खाते से कट गई।

पराशर ने कहा कि इसके बाद मक्की की फसल को फॉल आर्मी वार्म कीट पूरी तरह से चट कर गया और किसानाें द्वारा फसल बीजने से लेकर खाद तक हजारों रूपए की राशि व्यय की गई। इसके बाद सर्वेक्षण टीम ने बकायदा नष्ट हुई फसल की रिपोर्ट भी तैयार की, लेकिन इंश्योरेंस कंपनी ने स्पष्ट कहा कि उक्त रोग के तहत फसल का मुआवजा नहीं दिया जा सकता।

संजय ने कहा कि सरकार द्वारा अधिसूचित फसलों मक्की और धान को ओलावृष्टि, भू-स्खलन, जल भराव, बादल फटने और बिजली गिरने से लगी आग से हुए व्यक्तिगत नुकसान की भरपाई इस बीमा के अंर्तगत हो सकती है तो इस रोग को भी अधिसूचना में जारी करना चाहिए। पराशर ने कहा कि फाॅल आर्मी वार्म रोग भी एक तरह की प्राकृतिक आपदा ही है और इससे भी किसानों की सारी फसल नष्ट हाे जाती है।

इस वर्ष भी यह आपदा किसानों को परेशान कर रही है और खेतों में फसल को बचाने के तमाम प्रयास असफल हो रहे हैं। कहा कि कुछ किसानों ने पिछले वर्ष गेंहू की फसल का बीमा भी करवाया था, लेकिन उन्हें बीमित राशि क्यों नहीं मिली, इसके बारे में कोई बताने को तैयार नहीं है। इंश्योरेंस कंपनी, बैंक और कृषि विभाग के बीच आपसी समन्वय की कमी साफ नजर आती है। पराशर ने कहा कि होना तो यह चाहिए कि सभी विभाग और बीमा कंपनी मिलकर काम करें और कहीं कोई दिक्कत है तो किसान परामर्श केंद्र खोले जा सकते हैं।

संजय ने कहा कि किसानों का पहले ही खेती से मोह भंग होता जा रहा है और कीट रोग जैसी बीमारियों के चलते कृषि जुआ बनकर रह गई है। ऐसे में प्रयास होने चाहिए कि किसानों को हुए नुकसान की भरपाई समय पर हो और बीमा होने के बाद नष्ट हुई फसल का मुआवजा भी मिलना चाहिए।