हिमाचलः जून महीने में कैसे करें फसलों की बुआई व उनकी देखभालः कुलपति

Himachal: How to sow crops and take care of them in the month of June: Vice Chancellor
हिमाचलः जून महीने में कैसे करें फसलों की बुआई व उनकी देखभालः कुलपति

उज्जवल हिमाचल। पालमपुर
चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर (CSK Himachal Pradesh Agriculture University, Palampur) ने जून 2023 माह के दूसरे पखवाड़े में किये जाने वाले मौसम पूर्वानुमान सम्बन्धित कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में निम्नलिखित सलाह दी है, जो किसानों को लाभप्रद साबित होगी।

धान
लम्बी व बौनी किस्मों की रोपाई का समय 15 जून से 7 जुलाई तक तथा बासमती किस्मों की रोपाई का समय 20 जून से 30 जून तक रहेगा। धान की नर्सरी तैयार करने के लिए बीज को बैविस्टिन 2.5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर लें। तैयार नर्सरी को उखाड़ने से एक दिन पहले क्यारी में सिंचाई कर दें, ताकि जड़ों को नुकसान न हो।

समय से रोपाई की जाने वाली किस्म को लाइन में 20 सेंमी तथा देर से रोपाई वाली किस्म को 15 सेंमी की दूरी पर, पौध की आपस में दूरी 15 सेंमी तथा गहराई 3 सेंमी रखें। एक स्थान पर 2-3 पौध ही लगायें। बासमती के लिए यह दूरी 15 सेंमी ही रखें। खराब पौध की जगह नई पौध 15 दिन बाद रोपाई करें। खरपतवार नियन्त्रण के लिए रोपाई के 4-5 दिनों के अन्दर मैचटी दानेदार 5 प्रतिशत 30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से डालें।

श्री-विधि से तैयार नर्सरी की रोपाई जून के दूसरे पखवाड़े में की जाती है। खेत से निकाली गई पनीरी की रोपाई एक घण्टे के अन्दर ही की जानी चाहिए। पनीरी की रोपाई इस प्रकार करें कि उसकी जड़ सीधी रहे। खेत में पानी हमेशा होना चाहिए।

मक्की
निचले पर्वतीय क्षेत्रों में मक्की की बुआई 15 जून से 30 जून तक कर लें। रेणुका, गिरिजा कम्पोजिट, सरताज, अर्ली कम्पोजिट, पार्वती, नवीन कम्पोजिट, हिम-123 और पॉप कार्न मक्की की अनुमोदित किस्में हैं। इसके अतिरिक्त संकर किस्में जैसे कंचन-517, पी.एस.सी.एल.-3438, पी.एस.सी.एल.-4640, कंचन-101, हिम 95 व 9572-ए भी लगा सकते हैं। लाइन में बीजाई करने पर 20 किलोग्राम बीज एक हैक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है।

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खरपतवार नियन्त्रण के लिए बिजाई के 48 घण्टों के अन्दर टॉफाजीन या एट्राटॉफ या मासटॉफ या रसायजीन 50 डब्ल्यू. पी 3.0 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से 750 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। यदि मक्की के साथ दलहन फसलों की मिश्रित खेती हो तो उपर्युक्त रसायनों का प्रयोग न करें। इसके लिए लासो या सैट्रन की 3 लीटर या स्टाम्प की 4.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 750 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 48 घण्टे के अन्दर छिड़काव करें।

माश, मूँग व कुल्थी
मौनसून के आते ही जून के अन्त में माश की अनुमोदित किस्म हिम माश-1, यू.जी.-218, पालमपुर-93 एवं मूँग की सुकेती-1, शाइनिंग मूंग नं.-1 व पूसा बैसाखी और कुल्थी की बैजू, एच.पी.के.-4 किस्म लगाएं। बीज की मात्रा 18-20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें।

सब्ज़ी उत्पादन
प्रदेश के निचले एवं मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रांे में अदरक, हल्दी, कचालू- अरबी तथा जिमीकन्द की बिजाई का उचित समय चल रहा है। बिजाई के लिए अदरक की उन्नत किस्म ‘हिमगिरी’ व सोलन गिरीगंगा हल्दी की पालम पीताम्बर तथा पालम ललिमा, जिमींकन्द की पालम जिमींकन्द-1 तथा कचालू /अरबी की अधिक पैदावार देने वाली स्थानीय किस्मों का ही चयन करें।

अदरक, हल्दी बीजाई से पहले देशी हल से 2-3 बार खेतों की अच्छी तरह जुताई करें और 300 क्ंिवंटल गली सड़ी गोबर की खाद, 156 किलोग्राम ईफको -12ः32ः16, 85 किलो ग्राम यूरिया व 40 किलो ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश उर्वरक प्रति हैक्टेयर बिजाई के समय खेतों मेेें डालें। बिजाई के तुरन्त बाद गोबर की खाद का मल्च 100 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर या सूखी पत्तियां 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर रोपाई के बाद बिछा दें।

मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में भिण्ड़ी की किस्म पालम कोमल, पी.-8, अर्का अनामिका, परभनी क्र्रान्ति, संकर कलश कोमल, पंचाली इत्यादि तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बौनी फ्रासबीन की किस्म कन्टेंडर, पालम मृदुला, एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उंची किस्म लक्ष्मी, एस. बी. एम.-1 की बिजाई करें।

बीजाई के समय भिण्डी में 100 क्विंटल गोबर खाद, 156 मी. की दूरी पर रोपाई करें तथा रोपाई से पूर्व 250 क्विंटल गोबर खाद, 235 किलोग्राम 12ः32ः16, 150 किलोग्राम यूरिया व 54 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश उर्वरक प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें। उंचे पर्वतीय क्षेत्रों में खेतों में लगी हुई सब्ज़ियों में निराई-गुड़ाई करें तथा नत्रजन 40-50 किलो ग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें।

चारे वाली फसल
मक्की-क्षेत्रफल एवं उपज की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश की महत्वपूर्ण अनाज की फसल है। यह फसल उŸाम चारे तथा उत्तम किस्म के साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त है। अफ्रीकन टॉल एवं देसी किस्म के बीज 50 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से केरा विधि से बीजाई करें। नेपियर बाजरा हाइब्रीड को जड़ एवं तना कटिंग द्वारा सिटेरिया की तैयार नर्सरी की रोपाई तथा गिन्नी घास के बीज की सीधी बीजाई आदि भी चारे की फसल को लगाने का उचित समय है।

फसल संरक्षण
मक्की की फसल में कटुआ कीट व सफेद सुण्डी के नियन्त्रण के लिए हमेशा अच्छी तरह गली सड़ी गोबर की खाद का ही प्रयोग करें। जिन क्षेत्रों में इन कीटों की अधिक समस्या हो वहां पर बीज की दर थोड़ी अधिक रखें। इन कीटों के नियंत्रण के लिए कीटनाशक का प्रयोग भी किया जा सकता है।

इसके लिए 2 लीटर क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. नामक दवाई को 25 किलोग्राम रेत में मिलाकर प्रति हैक्टेयर के दर से बीजाई करने से पहले शाम के समय खेत में मिलाएं। जिन क्षेत्रों में राजमाश की बीजाई करनी हो, वहां पर बिजाई से पहले राजमाश के बीज को बैवस्टीन 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित/शोधित कर लें।

बीज उपचार करने से राजमाश की फसल में विभिन्न बीमारियों से बचाव हो सकता है। टमाटर, बैंगन व भिण्डी आदि सब्ज़ियों में फल छेदक कीड़े के नियन्त्रण के लिए 565 मि.ली. साइपरमैथरीन 10 ई.सी. (रिपकॉर्ड) 750 लीटर पानी के घोल का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें।

कद्दू वर्गीय सब्ज़ियों में लाल भृंग के नियन्त्रण के लिए डाईक्लोरवॉस 76 ई.सी. का 1 मि.ली. प्रति लीटर के हिसाब से तथा फल मक्खी के लिए मैलाथियॉन 10 मि.ली तथा गुड़ 50 ग्रा. के मिश्रण को 5 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें तथा खेतों में 25 फल मक्खी यौन गन्ध टैªप (फेरोमोन टैªप) प्रति हैक्टेयर लगायें।

टमाटर की फसल में बकाई रॉट के नियंत्रण हेतु मैटासिल/रिडोमिल एम.जैड. 2.5 ग्रा. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें और मौसम के हिसाब से 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करते रहें।

पशुधन
बरसात का मौसम शुरू होते ही पशुओं मे बाह्य व आन्तरिक परजीवियों के नियन्त्रण के लिए स्थानीय पशु चिकित्सक की सलाह लें। प्रदेश के निचले क्षेत्रों में पशुओं को गलघोटू व लंगड़ा बुखार के टीके बरसात से पहले-2 अवश्य लगवा लें जो कि स्थानीय पशु-चिकित्सालय में उपलब्ध होते हैं।

पशुओं से अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रत्येक पशु को प्रतिदिन 40 ग्राम खनिज लवण मिश्रण अवश्य खिलाते रहें। यह मिश्रण फीड के साथ खिला सकते हैं। यदि पशुओं को सूखा चारा ही खिलाया जा रहा है तो प्रत्येक को 40 ग्राम खनिज लवण मिश्रण प्रतिदिन अवश्य खिलाएं।

भेड़ों में प्रजनन काल के दौरान पौष्टिक राशन दें व अच्छे सुधरी नस्ल के भेड़ों का उपयोग करें ताकि अच्छी किस्म के ज्यादा व स्वस्थ बच्चे प्राप्त हो सकें। खरगोशों मंे बच्चों के पालन-पोषण का विशेष ध्यान रखें व छोटे बच्चों का हर दिन दूध पीना सुनिश्चित करें। मछलियों के तालाबों में खाद व खुराक को नियमित रूप से डालते रहे। अधिक जानकारी के लिए स्थानीय पशुचिकित्सक एवं मत्सय वैज्ञानिक की सलाह लेना न भूलें।

किसान भाईयों एवं पशु पालकों से अनुरोध है कि अपने क्षेत्र की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ठ जानकारी हेतु नजदीक के कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क बनाए रखें। अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र में 01894-230395 से भी सम्पर्क कर सकते हैं।

ब्यूरो रिपोर्ट पालमपुर

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