हिमाचलः अब पहाड़ दरकने भूस्खल से पहले मिलेगी चेतावनी, प्रदेश में अपनाई जा रही है यह तकनीक

उज्जवल हिमाचल ब्यूरो। किन्नौर

प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर में भूस्खल और पहाड़ों के दरकने की घटनाएं लगातार हो रही हैं, जिससे क्षेत्र के लोगों को जानमाल का काफी नुक्सान हो रही है। जिले की इन घटनाओं से निजात पाने के लिए प्रशासन ने सेंसर तकनीक प्रयोग करने जा रहा है। इस तकनीक से इस प्रकार की घटनाओं की सुचना पहले ही मिल जाएगी। जिले के भूस्खलन की दृष्टि से अतिसंवेदनशील 15 स्थानों पर अग्रिम चेतावनी सेंसर तकनीक स्थापित की जाएगी। सरकार के निर्देश के बाद किन्नौर जिला प्रशासन ने सेंसर तकनीक स्थापित करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आइआइटी मंडी के शोधार्थियों से संपर्क साधा है।

आइआइटी के शोधार्थी जल्द ही मुख्य सचिव राम सुभाग सिंह के समक्ष सेंसर तकनीक का प्रस्तुति देंगे। सरकार प्रदेशभर में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में सेंसर तकनीक स्थापित करने पर विचार कर रही है। मंडी जिले में कोटरोपी हादसे के बाद प्रशासन के आग्रह पर आइआइटी के शोधार्थियों ने भूस्खलन की अग्रिम चेतावनी के लिए सेंसर तकनीक विकसित की है। पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोटरोपी, गुम्मा, मनाली-चंडीगढ़ हाईवे पर हणोगी व कुल्लू जिले को जोडऩे वाले वैकल्पिक मार्ग मंडी-कमांद-कटोला बजौरा पर कांढी के पास यंत्र लगाए हैं।

यहां तीन साल में कई बार पहाड़ दरके हैं। अग्रिम चेतावनी सेंसर तकनीक की वजह से जानमाल का कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। किन्नौर जिला में वैसे तो हर साल पहाड़ दरकते रहते हैं, लेकिन अब वहां के पहाड़ जानलेवा बनने लगे हैं। सांगला के बटसेरी व शिमला-रिकांगपिओ मार्ग पर नियुगलसेरी में पहाड़ दरकने से करीब 35 लोगों की मौत हो गई थी। आए दिन किन्नौर में पहाड़ दरक रहे हैं। इससे स्थानीय लोग भी सहमे हुए हैं। चिह्नित स्थानों पर सेंसर तकनीक स्थापित करने के अलावा भूस्खलन संभावित पहाड़ों की सेटेलाइट मैपिंग होगी।