अरुण दीप ने कोरोना काल में समझाया घर रहने का महत्व

उज्जवल हिमाचल ब्यूरो। कांगड़ा

कोरोना महामारी ने ना केवल विश्व के एक क्षेत्र अपितु सारे विश्व को ही अपनी चपेट में ले लिया है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि कोविड-19 ने सामाजिक क्षेत्र को प्रभावित किया अथवा राजनितिक क्षेत्र को प्रभावित किया हो। शिक्षा, मनोरंजन, साहित्य, खेल जगत अथवा जीवन के कितने भी क्षेत्र हों सभी को प्रभावित किया है। लोगों के रोजगार चले गए , खाने के लिए खाना नहीं मिल पा रहा , खाना खरीदने के लिए पैसे नहीं बचे और भी ना जाने कितनी मुसीबतें एक साथ जिन्दगी में आ गईं जिनके बारे में शायद कभी किसी ने सोचा भी न था। लोग उस स्थान से जहां वे काम करते थे चाहे घर से 100 किमी दूर हो अथवा 1000 किमी पैदल ही अपने घरों के लिए चल दिए। कई कई दिनों तक भूखे भी रहे। कई कई दिनों तक सोए भी नहीं फिर भी अपनी मातृभूमि, अपने घर, अपने अपनों के पास पहुंचने का हौंसला लिए उनके कदम रुके नहीं। शायद उन सभी के मन में भगवान श्रीराम का वही संदेश गूंज रहा था जो उन्होने अपने अनुज लक्ष्मण को दिया था। जब लक्ष्मण ने श्रीराम से पूछा था कि भाई क्यों ना हम सोने की बनी लंका में रहें तो श्रीराम ने कहा था कि हे लक्ष्मण माना कि लंका सोने की है पर फिर भी मुझे अच्छी नहीं लगती क्योंकि जननी अर्थात् मां और जन्मभूमि अर्थात् मातृभूमि स्वर्ग से भी बढकर होती है ।