शीतलाष्टमी में जानें पूजा मुहूर्त एवं व्रत का महत्व

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

शीतला अष्टमी सनातन पंरपरा में महत्वपूर्ण पर्व है। मां शीतला का स्वभाव अत्यंत शीतल है। हिंदी पंचाग के चैत्र, वैशाख और ज्येष्ठ माह के अष्टमी को शीतलाष्टमी मनाया जाता है। शीतलाष्टमी को ‘बसौड़ा’ भी कहा जाता है। पुराणों में मां शीतला का उल्लेख सबसे पहले स्कन्दपुराण में मिलता है। मां रोगों का निवारण करने वाली देवी के रूप में जानी जाती हैं। मां की सवारी गधा है। मां के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं। मां की उपासना गर्मियों में सबसे ज्यादा की जाती है। मां के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते सफाई के सूचक हैं। जानिये पूजा और मुहूर्त एवं व्रत का महत्व।

शीतलाष्टमी मुहूर्त
आषाढ़ माह की अष्टमी तिथि 02 जुलाई दिन शुक्रवार को है।

पूजा की विधि
प्रातःकाल सभी नित्यकर्म के बाद स्नान करके पूजा का संकल्प लेते हैं। पूजा की थाली में दही, पूआ, पूड़ी, बाजरा, मीठे चावल और गुड़ का भोग लाया जाता है। मां की पूजा में हल्दी, अक्षत्, लोटे में जल और कलावा रखते है। इसके बाद भोग लगाना चाहिए।

मां शीतला की पूजा करने के लिए एक चांदी का चौकोर टुकड़ा अर्पित किया जाता है।

शीतलाष्टमी का महत्व
मां की पूजा करने से व्यक्ति के रोगों का समूल नाश हो जाता है। मां की पूजा बच्चों की दीर्घायु और आरोग्य के लिए की जाती है। मां शीतल की उपासना से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है। इनके कृपा से चेचक रोग से छुटकारा मिलता है।