राजकुमारी के प्रेम की अनूठी निशानी है प्रेम गुफा

श्रीनाथजी मंदिर से बनी 700 किमी लंबी प्रेम गुफा

उज्जवल हिमाचल। डेस्क
गोवर्धन के जतीपुरा में श्रीनाथजी मंदिर की ‘प्रेमगुफा’ दीवानगी का अनूठा उदाहरण है।पर्वतराज गोवर्धन की शिलाओं के ऊपर श्रीनाथजी का मंदिर बना है। मंदिर में श्रीनाथजी का दिव्य स्वरूप सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई अलग से रास्ता नहीं बना है। गिरिराज शिलाओं के ऊपर से ही निकलना पड़ता है। यहां बने शयन कक्ष में प्रेम गुफा का द्वार है। श्रीनाथजी मंदिर से बनी 700 किमी लंबी प्रेम गुफा दो प्रेमियों के प्रेम की गाथा सुनाती प्रतीत होती है। भक्त और भगवान के मिलन के ये पल धार्मिक इतिहास के पन्नों पर अंकित हैं। मेवाड़ की अजब कुमारी के प्रेम का समर्पण और विश्वास ने कान्हा को प्रेम गुफा बनाने पर मजबूर कर दिया। उसकी चाहत ने कन्हैया को जतीपुरा से 700 किमी दूर जाने को विवश कर दिया। होठों पर तैरती मुस्कान और तिरछे नयन देख मेवाड़ की दीवानी कान्हा से मुहब्बत कर बैठी। दरअसल एक बार मेवाड़ की अजब कुमारी के पिता बीमार हो गए। वह उनके शीघ्र स्वस्थ होने की मन्नत लेकर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने गोवर्धन आई। प्रभु सूरत देखते ही वह सुधबुध खो बैठी और मीरा की तरह उन्होंने कान्हा को मानसिक रूप से अपना पति मान लिया। वह तलहटी में रहकर उनकी सेवा में जुट गई। प्यार का समर्पण देख प्रभु भक्ति से प्रसन्न हुए, उन्हें दर्शन दिए तो उन्होंने प्रभु से नाथद्वारा चलकर अपने बीमार पिता को दर्शन देने का आग्रह किया। ब्रजवासियों के प्रेम में बंधे भगवान ने ब्रज के बाहर जाने से मना कर दिया। लेकिन भक्त के वशीभूत भगवान ने रोजाना सोने के लिए ब्रज में आने की शर्त पर अजब कुमारी का आग्रह मान कर चलने का वचन दे दिया। वचन को निभाने के प्रभु को मंदिर से नाथद्वारा तक करीब सात सौ किमी लंबी गुफा बनवानी पड़ी। मान्यता है, इस गुफा के रास्ते प्रभु सुबह नाथद्वारा चले जाते हैं और नयनों में नींद भरते ही वापस गोवर्धन लौट आते हैं। सेवायत रोजाना प्रभु के शयन को शैया बिछाते हैंं। सेवायतों की मानें तो शैया पर बिछे बिस्तरों पर रोजाना पड़ती सिलवटें प्रभु की शयन लीला को प्रमाणित करती हैं।

इतिहासकार कहते हैं

सेवायत सुनील कौशिक के अनुसार करीब 550 वर्ष पूर्व आन्यौर की नरो नामक लड़की की गाय का दूध गिरिराज शिला पर झरने लगा। उसे जब इस बात का पता चला तो उसने गिरिराज शिला पर आवाज लगाई, अंदर कौन है। अंदर से जवाब में तीन नाम सुनाई दिये, देव दमन, इंद्र दमन और नाग दमन। इसी शिला से श्रीनाथ जी का प्राकट्य हुआ और सबसे पहले उनकी बाईं भुजा का दर्शन हुआ। करीब 450 वर्ष पूर्व पूरनमल खत्री ने जतीपुरा में गिरिराज शिलाओं के ऊपर मंदिर का निर्माण कराया। कन्हैया के गिरिराज पर्वत उठाते स्वरूप के दर्शन श्रीनाथजी में होते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार गिरिराज महाराज, भगवान श्रीकृष्ण और श्रीनाथजी एक ही देव के अनेक नाम हैं।