टांडा मेडिकल अस्पताल में प्रशिक्षु डॉक्टर्स की बड़ी लापरवाही, मासूम की गई जान

अंकित वालिया। कांगड़ा

रशपाल सिंह के बेटे ठाकुर नीरज राणा ने बताया की उनकी पत्नी को उन्होंने 5 अगस्त को टांडा अस्पताल में डिलीवरी के लिए एडमिट किया। रात 11 बजे उनकी पत्नी को लेबर पेन होना शुरु हुई। इसके बाद उनकी पत्नी को लेबर रूम में डिलीवरी के लिए रात को 2 बार ले जाया गया व वापिस वार्ड में लाया गया। फिर मौके पर मौजूद स्टाफ ने उनकी पत्नी को वहीं रखवाकर बाकी घरवालों को अगले दिन 4 बजे के करीब यह कहकर घर भेज दिया की आप सब सुबह आना अभी महिला को डिलीवरी की दर्द नहीं हो रही है। जबकि उनकी पत्नी को दर्द हो रही थी। बाहर मौजूद घरवालों को भी उन्होने घर भेज दिया। देखभाल कर रही नर्सें उनकी पत्नी को अगले दिन 6 अगस्त को 9.30 बजे फिर से लेबर रूम मे ज्यादा दर्द होने के चलते ले गई। इसके बाद धीरे धीरे इस कार्य में 1.30 बज गए। फिर उनके पति को अंदर बुलाया गया व उनकी पत्नी को दर्द के लिए दर्दरहित टीका एसआर सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर अंडर प्रशिक्षण प्रशिक्षु द्वारा उनकी मौजूदगी में लगाया गया। इंजेक्शन देने के बाद फिर उन्हें बाहर भेज दिया गया।

इसके बाद शाम 4 बजे फिर से उनके परिवार से किसी महिला को बुलाया गया व बच्चा बाहर आने की प्रक्रिया के बारे में बताया गया। बच्चा बाहर आने के लिए तैयार था। उसके बाद उन्होंने गर्भवती महिला को जोर लगाने के लिए कहा। जबकि दर्दरहित टीका लगा कर महिला को दर्द महसूस नहीं हो पा रही थी। उसके बाद प्रशिक्षु डॉक्टर द्वारा औजारों की सहायता से बच्चे को बाहर निकाला गया। जिससे औजार बच्चे के सर पर लग गया व बच्चा बेहोश बाहर आया। उन्हे लड़का हुआ था। फिर आईसीयू वार्ड मे उन्हे एसआर डॉक्टर द्वारा बुलाया गया उन्होंने बताया कि मेरे पास आपका बेटा बिना सांस लेता हुआ पहुंचा हैं और मेने उसे आईसीयू में वेंटीलेटर पर रखा है। बच्चे की हालत बहुत खराब है और बचना भी मुश्किल है।

जब उन्होंने अंदर जाकर अपने बच्चे को देखा तो बच्चे के सर पर कट का बड़ा निशान देखा गया। जिसमे डिलीवरी के दौरान प्रक्षिक्षु डॉक्टर्स द्वारा भारी लापरवाही सामने आई है। घरवालों ने बताया की उनके बच्चे के सिर पर गहरी चोट का निशान करीब एक इंच का उन्हे दिखा। जिस कारण बच्चे के सर पर से काफी खून निकल चुका था। फिर डॉक्टर ने आकर उनके बच्चे के सर पर करीब 7-8 टांके लगाए। फिर परिवार वालो ने यूट्यूब पर इस बारे मे जांच की। उन्होंने बताया की किसी तेजधार औजार से अंडर प्रशिक्षु डॉक्टर द्वारा बच्चे के सर पर जख्म हुआ है। इसके बाद आईसीयू में बच्चा डॉक्टर जसवाल चिल्ड्रन स्पेशलिस्ट की देखरेख में 7 दिन रहा। आईसीयू के बड़े डॉक्टरो ने अपना पूरा ध्यान बच्चे की देखभाल में लगायाए लेकिन आखिर में बच्चे को बचा नही पाए। एसआर प्रशिक्षु डॉक्टरो द्वारा डिलीवरी के दौरान ये इस तरह की भारी लापरवाही टांडा में सामने आई है। जिसकी वजह से एक मासूम बच्चे की जान चली गई।
अभी मामले के जांच चल रही है। अब इस मामले में लापरवाही कहां और किस से हुई है यह पता लगाया जाना है। बच्चे के माता पिता में प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल टांडा के प्रक्षिक्षुओ के खिलाफ भारी रोष है। उनका कहना है की उनका बच्चा बिल्कुल स्वस्थ था। प्रशिक्षु डॉक्टरों के कारण ही उनके बच्चे की मृत्यु हुई है।

टांडा मेडिकल अस्पताल में इलाज करवाने गए मरीजों को अक्सर यह पता नही चलता है कि कोन व्यक्ति असल में डॉक्टर है और कोन एसआर अंडर प्रशिक्ष, क्योंकि डॉक्टर और एसआर अंडर प्रशिक्षु डॉक्टर्स दोनो ही सफेद एप्रोन पहन कर मरीज की जांच करते है। भविष्य में ऐसी लापरवाही फिर कभी ना हो इसके लिए डॉक्टर्स और एसआर अंडर प्रशिक्षु डॉक्टर्स के एप्रोन का रंग अलग अलग होना चाहिए।