कांगड़ा नप में दुकानों की बंदरबांट पर पार्षदों के चहेते कूट रहे चांदी

जनता के हितों पर चल रही राजनीति के ठेकेदारों की तलवार

उज्जवल हिमाचल। कांगड़ा

कांगड़ा नगर परिषद के नगर निकाय चुनावों में इस बार नगर परिषद की किराए पर दी गई दुकानों को सबलेट करने का मुद्दा भी सिर उठाने लगा है। इस बार बहुत समय से नप में इन दुकानों पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले पार्षदों को जनता धूल चटाने का मन बना चुकी है। जी हां परिषद की इन दुकानों को कम किराए में लेने वाले लाभार्थी इन्हें अन्य दुकानदारों को सबलेट कर ज्यादा किराया वसूल रहे हैं और चांदी कूट रहे हैं। इससे नगर परिषद की आय में तो बढ़ोतरी नहीं हो पा रही, लेकिन पार्षदों के इन चहेतों को लाखों का लाभ पहुंच रहा है। नगर परिषद कांगड़ा के अंतर्गत नगर परिषद ने 86 दुकानें दुकानदारों को किराये पर दी हैं। ये दुकानदार लंबे अरसे से इन दुकानों पर काबिज हैं और मात्र पांच से सात सौ रुपए प्रतिमाह किराया नगर परिषद को देते हैं। पिछले कई वर्षों से नप ने इनका किराया बढ़ाना भी मुनासिब नहीं समझा।

इसके विपरीत लंबे समय तक प्रधान पद पर काबिज रहे प्रधानों ने भी अपने चहेतों को जमकर रेवडिय़ां बांटी, जबकि इन दुकानों का मार्केट किराया 10 से 15 हजार मासिक किराया बनता है, लेकिन किसी भी प्रधान ने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए किराया बढ़ाना मुनासिब नहीं समझा। लोगों का कहना है कि अब वही पुराने लोग नया मुखौटा पहनकर जनता को बहलाने के लिए चुनावों में उतर पड़े हैं। उनका कहना है कि शायद यह लोग जनता को मूर्ख समझते हैं, ताकि वे उनके झांसे में दोबारा आ जाएंगे। लगभग यही स्थिति पिछले 10-15 वर्षों से पार्षद पद पर तैनात रहे पार्षदों की भी है। वे लोग भी किराया बढ़ाने या पुराना किराया वसूलना मुनासिब नहीं समझते हैं। उसी का नजीता है कि आज नगर परिषद के किरायेदारों के पास 16 लाख 10 हजार 736 रुपए बकाया हैं, लेकिन पार्षदों का रिकवरी करने की तरफ जरा भी ध्यान नहीं है।

जांच कर की जाएगी कानूनी कार्रवाई

इस बाबत बात करने पर नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी चमन लाल ने कहा कि उन्होंने अभी हाल ही में अपना पदभार संभाला है और वह अतिशीघ्र सारे मामले की जांच करके दोषियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई अमल लाएंगे। उन्होंने कहा कि कानूनन हर 11 माह बाद मासिक किराये में बढ़ोतरी जरूरी है। दुकानें पगड़ी पर देने और सबलेट करने वाले दुकानदारों पर भी जांच बिठाई जाएगी, ताकि नप को चूना लगाने वाले दुकानदारों के विरुद्ध शिंकजा कसा जा सके।

10 लाख 7 हजार 850 रुपए बनता है सालाना किराया

यहां रोचक पहलू यह है कि नगर परिषद को 86 दुकानों से मात्र 10 लाख 7 हजार 850 रुपए सालाना बनता है, लेकिन कई दुकानदार कई वर्षों से किराया नहीं दे रहे हैं। इसके बावजूद नगर परिषद उन पर कोई भी कार्रवाई करने से गुरेज करती है। कई दुकानदारों ने आरोप लगाया है कि प्रधानों के चहेतों ने अपनी दुकानों को आगे सबलेट कर दिया है और उनसे 10 से 15 हजार रुपए मासिक वसूल रहे हैं, लेकिन नगर परिषद मूकदर्शक बनकर तमाशाई बनी है।

नोटिस के नाम पर महज दिखावा

नगर परिषद के आसपास कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकानों को लाखों रुपए पगड़ी लेकर दूसरों को दे दी हैं और नगर परिषद ने मात्र दो-400 मासिक किराया बढ़़ाकर वे दुकानें नए लोगों के नाम कर दी है, जिससे साफ जाहिर होता है कि यह सारा काम नगर परिषद के अधिकारियों, पार्षदों व प्रधानों की सहमति से हो रहा है, लेकिन पार्षद एक मामूली सा नोटिस निकाल कर अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर लेते हैं। जिसका खामियाजा शहर वासियों को भुगतना पड़ता है। क्योंकि अगर नगर परिषद की आमदन कम होगी, तो प्रदेश सरकार से भी विकास कार्यों के लिए पैसा कम आएगा। लोगों का कहना है कि अगामी चुनावों में ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जाए और ईमानदार व काम करने वाले पढ़े-लिखे लोगों को आगे लाया जाए।