नारी को अपमानित करने वाली बातों से मुक्ति का संकल्प अनिवार्य: PM

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

PM मोदी ने लाल किले की प्राचीर से लगातार नौवीं बार भाषण दिया। इसमें सब कुछ था। नव गति, नव लय, ताल- छंद नव… सब कुछ।
पांच प्रण लेने का आह्वान:
पहला- विकसित भारत।
दूसरा- गुलामी के अंश मात्र से भी मुक्ति पाना।
तीसरा- विरासत पर गर्व।
चौथा- एकता और एकजुटता।
पांचवां- नागरिकों का कर्तव्य।

इन पांचों प्रण से भी बड़ी और भावुक बात जो कही वह है – ‘नारी का सम्मान’। उन्होंने कहा नारी का गौरव, राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है। उन्होंने देश से पूछा- क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं? गलियों, सड़कों, चौराहों यहां तक कि बसों-ट्रेनों में चलते वक्त भी नारी आज खुद को सुरक्षित नहीं समझ पाती, इसकी वजह को समझना ही होगा।

यह बड़ी बात है। यह मंचों पर, सभाओं में नारी को सम्मानित करने का मामला नहीं है। दरअसल, हम स्वभाव वश, कभी घर में, कभी बाहर, कभी ऑफिस में जो कुछ बोलते हैं या करते हैं, उस सब में भी जब नारी का सम्मान नहीं होता, यह उस मर्म की बात है। गलियों, सड़कों, चौराहों यहां तक कि बसों-ट्रेनों में चलते वक्त भी नारी आज खुद को सुरक्षित नहीं समझ पाती, उस सब के कारण पर जाने की बात है यह।

निश्चित ही, यह सब रातोंरात नहीं हो सकता लेकिन नारी के सम्मान के लिए कम से कम 75 साल तो नहीं ही लगने चाहिए। आखिर पुरुष प्रधान समाज की दुहाई देकर कब तक नारी को नीचा दिखाते रहेंगे हम? बंधनों में कब तक उसे जकड़े रहना चाहते हैं हम?

आखिर शारीरिक बनावट के अलावा महिला और पुरुष में अंतर ही क्या है? कई मायनों में नारी की शक्ति पुरुष से ज्यादा ही है। जब भी नारी जाति के सम्मान की या ऊंचा पद पाने की, या ज्यादा पगार पाने की बात सामने आती है, अक्सर, पुरुष खुद को छोटा समझकर अपमानित महसूस करने लगता है। क्यों? अक्सर नारी के बराबरी से जवाब देते ही पौरुष घायल हो जाता है। क्यों? क्यों हम उसे हमेशा अबला बनाए रखना चाहते हैं। आखिर शारीरिक बनावट के अलावा अंतर ही क्या है?

हाथ, पैर, दिल, दिमाग, सब कुछ तो समान ही है। बल्कि कई मायनों में नारी की शक्ति पुरुष से ज्यादा ही है। फिर सुपीरियर होने का हक हमें दिया किसने? ईश्वर ने तो नहीं ही दिया! फिर क्या यह पुरुष ईश्वर से भी बड़ा है? नहीं। बात बड़े, छोटे की भी नहीं है। सम्मान की है। सम्मान दीजिए। सम्मान लीजिए।