महिला ड्राइवर पर समाज काे आज भी नहीं विश्वास, कायम है पुरानी धारणा

उज्जवल हिमाचल। नई दिल्ली

आज यानी 8 मार्च को महिलाओं के सम्मान में विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और उनके अधिकारों को बढ़ावा देना है। संस्कृत में कहा भी गया है कि ‘नारी शक्ति शक्तिशाली समाजस्य निर्माणं करोति’, जिसका अर्थ है – नारी सशक्तिकरण ही किसी समाज को शक्तिशाली बना सकती है। यह बात हर मायने में सही बैठती है, लेकिन आज भी समाज में महिलाओं को पुरुष के मुकाबले बहुत से लोग कम मजबूत समझते हैं। इस बात पर हाल ही में कुछ वाहन कंपनियों द्वारा सर्वे भी किया गया। इसमें बताया गया कि कैसे महिलाओं की ड्राइविंग पर लोग विश्वास नहीं करते हैं।

दरअसल,समाज में इस तरह की धारणा है कि अगर ड्राइवर महिला है, तो उनसे कुछ दूरी पर ही ड्राइविंग करना सही रहता है। ये वाहन को सही तरीके से हैंडल नहीं कर पाती हैं। कुछ लोग वाहन के प्रकार के हिसाब से महिलाओं को ड्राइविंग ना करने की हिदायत देते हैं। जैसे यह एसयूवी (SUV) कार है, आप इसे नहीं संभाल पाएंगी, लेकिन शायद महिलाओं को हिदायत देने वाला समाज भूल चुका है, कि आज महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। हैचबैक से लेकर एसयूवी तक चलाकर ये लगातार लोगों की बातें झूठला रही हैं। वहीं, बाइक राइडिंग में भी देशभर से महिलाएं बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं।

अपने कंधों पर पूरे परिवार का बोझ उठाने वाली महिलाएं कुछ किलो की बाइक चलाने से कैसे घबरा सकती हैं। दोपहिया वाहन निर्माता कंपनियां द्वारा कराए जानें वाली ट्रैक रेस में आज अधिकारिक तौर पर कई महिलाएं शामिल हैं और हैवी से हैवी बाइक चलाकर लोगों की अपने प्रति राय को बदल रही हैं। आज की नारी हर एक क्षेत्र में अपने हुनर का परचम लहरा रही है।

जर्मन वाहन निर्माता कंपनी ऑडी ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर कुछ महिलाओं पर इस बात का सर्वे किया। इसमें महिलाओं द्वारा कहा गया कि लोग महिला होने के नाते उनकी ड्राइविंग पर विश्वास नहीं करते हैं, कुछ को कहा जाता है कि एसयूवी आपसे नहीं संभलेगी, तो कुछ को लग्जरी वाहन देने से पहले बताया जाता है कि खाली सड़क पर ही ड्राइव करना।

इस बात को दरकिनार करते हुए महिलाओं ने बताया कि एक जिम्मेदार महिला होने के नाते हमे हर क्षेत्र में अपना परचम लहराने का पूरा हक है। हम किसी भी वाहन को चलाने में समर्थ हैं, लेकिन बता दें कि आज भी कई ऐसे देश है, जहां महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त नहीं है, जिसमें भारत भी शामिल है। महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। वर्षाें से चली आ रही इस प्रथा पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाने वाला एक दिन कोई बदलाव नहीं ला सकता।