फोरलेन संघर्ष  समिति ने मुआवजे को लेकर मिनी सचिवालय के बाहर किया धरना प्रदर्शन

विनय महाजन। नूरपुर
नुरपुर फोरलेन  प्रभावित संघर्ष समिति नूरपुर ने शुक्रवार को मिनी सचिवालय परिसर में भूमि के बदले उचित  मुआवजा न मिलने सरकार के खिलाफ धरना  प्रदर्शन किया तथा उसके उपरांत स्थानीय एसडीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा। ज्ञापन के माध्यम से प्रभावितों ने कहा कि कंडवाल से सीयूणी तक प्रथम चरण में प्रभावितों को भूमि व अधिग्रहणों के मुआवजे की राशि नामात्र है जिसका प्रभावित विरोध करते हैं।मुआवजे में फोरलेन एक्ट 2013 के प्रावधानों की कहीं भी पालना नहीं की गयी। प्रभावितों का पक्ष फोरलेन की समस्याओं के निवारण हेतु बनाई गई कैबिनेट कमेटी द्वारा भी नही सुना गया। ज्ञापन के माध्यम से प्रभावितों ने कहा कि भवनों के अधिग्रहण को 2020 की लागत के आधार पर लागू करके उसमें भी 35 प्रतिशत कटौती की जा रही है जबकि 24-2-22 को एसडीएम एवं एनएचएआई के पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक में यह आश्वस्त किया गया था कि स्ट्रक्चर में कोई कटौती नहीं की जाएगी।

परन्तु जब अवार्ड की नकल निकाली गयी तो उसमें 35 प्रतिशत की कटौती की गई थी जोकि प्रभावितों को स्वीकार नहीं है। ज्ञापन के माध्यम से प्रभावितों ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि भूमि मुआवजे के 3 विभिन्न अवार्ड दिए गए हैं। जिन्हें आखिरी अवार्ड को आधार मान कर अर्विट्रेटर के पास अपील करने से पहले तत्कालीन जिलाधीश कांगड़ा द्वारा घोषित 2018 के अनुसार मुआवजा दिया जाए।

भवनों की लागत का आधार वर्ष 2022 हो तथा जिन प्रभावितों को प्रस्तावित मुआवजा दिया जाना है इसमें कटौती न की जाए। मुआवजा पूरे भवन का दिया जाए चाहे उसका आंशिक भाग ही अधिग्रहित किया जा रहा हो। कारोबारी परिसरों के लिए फोरलेन एक्ट 2013 के तहत क्षतिपूर्ति व पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन के प्रावधानों को लागू किया जाए।

भवनों के मुआवजे में 2018 में तत्कालीन जिलाधीश कांगड़ा द्वारा सैटल किए गए 59 हजार,53 हजार व 48 हजार प्रति स्केयर मीटर रेटों को वर्तमान लागत के अनुसार बढ़ाकर लागू किया जाए। घोषित अवार्ड की तिथि से भुगतान किए जाने की तिथि के बीच की अवधि का ब्याज दिया जाए जबकि तीसरा अवार्ड 6 मास पहले किया गया, परन्तु मार्च के आखिरी सप्ताह तक राशि खाते में नही डाली गई।

प्रदेश सरकार द्वारा 7 माह पहले 3 कैबिनेट मंत्रियों पर आधारित कमेटी बनाई गई थी उसकी कारगुजारी से समिति को अवगत करवाया जाए जोकि सन्देह के घेरे में है। यदि उपमंडल स्तर पर कमेटी कोई फैसला नहीं लेती तो मजबूरन प्रभावित 5 अप्रेल के बाद सख्त फैसले लेने को मजबूर होंगे। प्रभावितों ने कहा कि यदि सरकार तथा प्रशासन ने मांगो पर अमल नहीं किया तो प्रभावित अपने भवनों को हाथ नहीं लगाने देगें।