श्रीआनंदपुर साहिब की पावन धरती पर रिलीज हुई सामाजिक बुराईयों को नग्न करती पंजाबी फिल्म

श्रीआनंदपुर साहिब। अखिलेश बंसल

पंजाबी फिल्मों की दुनिया में बहुत देर बाद एक ऐसी फिल्म तैयार हुई है, जिसके अंत में हर दर्शक यही बोलता है कि अगर समाज में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, लडक़ी की जन्म दर बढ़ाने और लड़की को परिवारों में लड़काें के बराबर का दर्जा देने पर जोर दिया जाए। ‘दहेज प्रथा’ पर अंकुश लगाया जाए, तो देश के कोई भी परिवार दुखी नहीं रहेगा। श्रीआनंदपुर साहिब की पावन धरती पर कुछ दिन पहले ही सामाजिक बुराईयों को नग्न करती पंजाबी फिल्म रिलीज हुई है। परियास कला मंच द्वारा तैयार की गई हास्यपूर्ण फिल्म ‘वेहड़ा छडिय़ां दा’ का विमोचन जिला योजना समिति
रूपनगर के चेयरमैन रमेश चंद्र दसगरायी ने किया। इस मौके पर कला मंच के प्रधान व प्रिंसिपल निरंजन सिंह राणा भी मौजूद थे।

मुख्यातिथी रमेश चंद्र दसगरायी ने कहा कि परियास कला मंच द्वारा तैयार की गई यह फिल्म सामाजिक बुराईयों को नंगा करती है। भ्रूण हत्या, अंध विश्वास, अनपढ़ता जैसी बीमारियां समाज के लिए रिस्ते घाव की तरह हैं। एम. टच्च मीडिया और परियास कला मंच ने मिल कर संयुक्त रूप से जो यह प्रयास किया है, सराहनीय है। छोटे पर्दे वाली तैयार की गई इस फिल्म के निदेशक राज घई हैं, गायक लेखक व अभिनेता जुगराज पवात सिंह हैं। इरफान खान ने भी गीत गायन किया है, संगीत जसदीप आलम ने दिया है, जबकि फिल्म के प्रोड्यूसर: बलजिंदर दुमना हैं और फिल्म की पूरी कहानी को शान अकबरपुरी ने कैमरे में बंद किया हैं। फिल्म के रिलीज समारोह के वक्त हरप्रीत सोनू, सुखी सिंह शेखपुरिया, स्वर्न सिंह फतेहपुरिया, मोहनदीप कौर, अमनदीप बाबा, मनजीत कौर, मनजोत सिंह सहित कलाकारों के अलावा प्रेम सिंह बासोवाल, प्रोफेसर राजवीर सिंह, प्रोफेसर राजवीर सिंह भी उपस्थित थे।

यह है फिल्म की कहानी
एक परिवार ऐसे तीन भाईयों के परिवार की है, जिसमें सभी भाई अविवाहित होते हैं। रोटी बनवाने के लिए एक -दूसरे की कमजोरियां ढूंढते रहते हैं। घर बसाने के लिए लोहे के वर्तन बनाने वाली एक लडक़ी से एक भाई इश्क जताता है, लेकिन लडक़ी की आकांक्षा किसी राज कुमार से विवाह करने की है। एक घटना यह घटती है कि जैसे ही लडक़ी उनके आंगण में आ भी जाती है, तो तीनों भाई उसे देखकर टल्ली हो जाते हैं। जब उनकी दाल नहीं गलती तो कोई दूसरा रास्ता खोजने की कोशिश में लग जाते हैं। इसी दौरान कच्चे घरों रहते विवाहितों के लिए सरकार की एक योजना लेकर सरकारी मुलाजिम उनके घर पहुंचते है। तीनों कहते हैं कि एक भाई विवाहित है लेकिन उनकी पत्नी मायके गई हुई है। उनके जाने के बाद एक पड़ौसी उनके घर पहुंचता है, उन्हें उनकी औकात बताता है। छड़ेपन की बदनामी से बचने और सरकारी स्कीमों का लाभ लेने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं।

सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए दो भाई अपने एक भाई को विवाहिता बना देते हैं। गांव में शोर मचा देते हैं। पड़ाेसी उन्हें गुरुद्वारा लेजाकर माथा भी टिका लाते हैं। एक पड़ाेसी उनका भेद निकाल लेता है। इधर, सरकारी मुलाजिम फिर घर पहुंचते हैं, लेकिन पड़ौसी मुलाजिमों के सामने भंडा फोड़ देते हैं। कहानी के अंत में बताया जाता है कि अगर समाज में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, लड़की की जन्म दर बढ़ाने और लडक़ी को परिवारों में लड़काें के बराबर का दर्जा देने पर जोर दिया जाए। ‘दहेज प्रथा’ पर अंकुश लगाया जाए, तो देश के कोई भी परिवार दुखी नहीं रहेगा।