छाड ओ ग्रहणा पापीया म्हारे ग्रहणा जो छाड, के स्वर से गूंजा करसोग

पीयूष शर्मा। करसोग

मंडी जिला की तहसील करसोग तथा ऐतिहासिक पांगणा गांव में भी लोगों ने सदी के सबसे बड़े सूर्यग्रहण का आनंद सोलर फिल्टर से देख कर लिया। व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमीत गुप्ता ने बताया कि पांगणा में डॉक्टर जगदीश शर्मा के पास सूर्य ग्रहण देखने का सोलर फिल्टर है। यह सूर्य किरण फिल्टर 24 अक्तूबर 1995 को लगे सूर्य ग्रहण के समय भारत ज्ञान विज्ञान समिति और हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति ने बांटे थे। इसी बीच ग्रहण काल मे मंदिर के कपाट भी बंद रहे और पूरे सुकेत क्षेत्र में ग्रहण काल में “छाड ओ ग्रहणा पापीया म्हारे ग्रहणा जो छाड” के स्वर दूर-दराज तक के हर गांव में सुनाई दिए। लोग ग्रहण काल में घरों से बाहर नहीं निकले।

ग्रहण काल में कुछ भी नहीं खाया पीया। ग्रहण लगने से पूर्व कुशा/द्रभ को पानी, दूध और पकाए गए खाद्य पदार्थों में रख ग्रहण के दुष्प्रभाव से इन्हें बचाया गया। ग्रहण काल में घर-परिवार-समाज, पशुधन, गांव के जीव जंतुओं, पेड़-पौधों, द्रव्यों और देवी-देवताओं को राहु और केतू के प्रकोप से बचाने के लिए घर के बरामदे में खड़े होकर थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद शंख ध्वनि कर “छाड ओ ग्रहणा पापीया म्हारे सूरजा/चंद्राओ छाड बे” के स्वर भी गूंजाते रहे।ग्रहण काल पूर्ण होने पर नदी-बावड़ी या घर में परिवार के सभी सदस्य स्नानादि के बाद गंगा जल की बूंदें ग्रहण कर शरीर की शुद्धि कर नव वस्त्र धारण किए।

स्नान करने के बाद सबसे पहले रसोई व चुल्हे को गाय के गोबर और गौमूत्र से लीपकर फिर खाना पकाने और थाली-गिलास आदि बर्तनो को शुद्ध जल से साफकर ग्रहण के प्रभाव से मुक्त किया।तद्पश्चात पूजा स्थल मे स्थापित”ठाकुरों”(देवी-देवताओं की लघु मूर्तियों) का स्नान-पूजन कर ग्रहण के प्रकोप से मुक्ति और घर-परिवार-समाज की सुख समृद्धि की कामना कर अन्न-जल पकाकर परिवार सहित ग्रहण किया। यह परंपरा आज भी अनेक घर-परिवारों में कायम है।विज्ञान अध्यापक पुनीत गुप्ता का कहना है कि वैज्ञानिक भी सूर्यग्रहण के दुष्प्रभावों के प्रति विश्व समुदाय को सतर्क कर रहे हैं। सूर्य ग्रहण के दुष्प्रभावों से बचने के लिए नंगी आंखों से सूर्यदर्शन न करने की चेतावनी कर हमारी पौराणिक मान्यताओं को सत्य प्रमाणित कर हिन्दू संस्कृति और ग्राम्य परंपरा को गौरवान्वित कर रहे हैं।