गर्मियों में हिमाचली रसोई की शान ‘लिंगड़ी’ ने बाजार में दी दस्तक

मनीष ठाकुर। कुल्लू

गर्मियों में हिमाचली रसोई की शान ‘लिंगड़ी’ ने बाजार में दस्तक दे दी है। सब्जी, अचार और अन्य पकवानों में प्रयोग होने वाले इस साग को बाजार में पहुंचाया जा रहा है। लिहाजा, दुनिया भर में अनेक प्रकार के नामों से पहचानी जाने वाली इस ‘लिंगड़ी’ का स्वाद गर्मियों में लोग सब्जी और सर्दियों में अचार के रूप में चखेंगे। बता दें कि कुल्लू सहित राज्य भर में ‘लिंगड़ी’ कई ग्रामीणों के लिए आजीविका का भी साधन है और बाजार में इसे 50 से 80 रुपए प्रति किलो तक की दर से बेचा जाता है।

जिला कुल्लू के प्रवेश द्वार भुंतर, मणिकर्ण, बजौरा, कुल्लू, सैंज, बंजार, मनाली सहित अन्य सभी बाजारों में इसकी बिक्री करते लोग नजर आते हैं। इस जंगली सब्जी में अनेक प्रकार के पोषक तत्त्वों की भी भरपूर मात्रा होती है।

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विशेषज्ञों की मानें तो इसमें 17 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। अप्रैल और मई माह में पनपने वाली इस सब्जी की शुतुरमुर्ग किस्म को खाने के लिए उपयोगी माना जाता रहा है, जबकि अन्य किस्में कुछ जहरीली पाई गई हैं।

जानकारों के मुताबिक इसमें विटामिन ए और सी भी प्रचुर मात्रा में होती है। हालांकि इसमें एंजाइम की उपस्थिति के कारण बेरी-बेरी या विटामिन-बी की कमी भी इसका अधिक सेवन कई बार पैदा कर सकता है। राज्य के ऊंचे और नदी-नालों के साथ लगते क्षेत्र में इन दिनों ‘लिंगड़ी’ की भरमार दिख रही है। लिंगड़ी को पूर्वी भारत में निंग्रो के रूप में तो पूर्वी एशिया, जापान में इसे ‘वाराबी’ इंडोनेशिया में ‘गुलाई पाकू’, चीन, कोरिया, ताईवान में ‘ज्यूसाई’ और ऑट्रेलिया, अमेरिका व फ्रांस आदि अन्य देशों में ‘फीडलहैड’ के नाम से जाना जाता है।

‘लिंगड़ी’ में 87 फीसदी पानी के साथ, चार फीसदी प्रोटीन और तीन फीसदी कार्बोहाईड्रट सहित वसा, फाईबर और ऐश पाया जाता है, तो मैग्नीशियम, लोहा, पोटेशियम, फास्फोरस, नियासिन और जिंक, फाइबर, कैल्शियम जैसे खनिज होते हैं। वहीं, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड भी इसमें मौजूद हैं।