लंपी महामारी से हुई पशु की मौत का किसान को मिलना चाहिए मुआवजा: कैप्टन संजय

बीमारी की रोकथाम के लिए विभाग को करने चाहिए ठोस उपाय

उज्जवल हिमाचल। परागपुर

कैप्टन संजय ने कहा है कि जसवां-परागपुर क्षेत्र में लंपी महामारी ने विकराल रूप धारण करना शुरू कर दिया है और डाडासीबा व कोटला बेल्ट में यह बीमारी तेजी से फैलती नजर आ रही है। ऐेसे में पशु पालन विभाग व स्थानीय प्रशासन को इस महामारी की रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर ठाेस उपाय करने की आवश्यकता है।

पराशर ने जसवां-परागपुर क्षेत्र की लग बलियाणा पंचायत में जनसंवाद कार्यक्रम में कहा कि विपरित होते हालात में प्रभावित पशुओं का समय पर उपचार हो और इस बीमारी की रोकथाम के लिए प्रभावी स्तर पर कदम उठाने चाहिए। संजय ने सरकार से भी आग्रह किया है कि जिन किसानों के पशु इस संक्रामक बीमारी से असमय मौत का शिकार हुए हैं, उन पशु पालकों को मुआवजा भी मिलना चाहिए।

पराशर ने कहा कि उनके पास जो जानकारी उपलब्ध है, उसके मुताबिक लंपी बीमारी से अभी तक 279 पशु संक्रमित हो चुके हैं। इसमें से सात पशुओं की मौत हो गई है और 15 पशु इसी बीमारी को हराने में भी कामयाब हुए हैं। बावजूद अब भी क्षेत्र में लंपी बीमारी के 257 एक्टिव मामले हैं, जोकि गंभीर चिंता का विषय है। संजय ने कहा कि हालांकि विभाग की टीमें पूरी मुस्तैदी के साथ डटी हुई हैं, लेेकिन जसवां-परागपुर क्षेत्र के साथ सटे जिला ऊना में इस महामारी का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ गया है।

ऐसे में अतिरिक्त सतर्कता से काम करने की जरूरत है। पशुशालाओं के आसपास किसानों को भी सफाई रखने के लिए जागरूक करना होगा। संजय ने उदाहरण देते हुए कहा कि वह गत दिवस डेरा बाबा हरि शाह, अंबोआ के दरबार में पहुंचे थे और वहां स्थित गौ में रखे गए दो सौ से ज्यादा गौ धन अब तक इस बीमारी से सुरक्षित हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि गौशाला में सफाई व्यवस्था का बेहतर तरीके से प्रबंध किया गया है। पराशर कहा कि पशु पालन विभाग को पशुशालाओं में फॉगिंग भी करवानी चाहिए। पराशर ने कहा कि समय रहते पशु पालन विभाग को स्वस्थ पशुओं की वैक्सीनेशन कर देनी चाहिए क्योंकि अगर पशु इस रोग की चपेट में आ जाता है तो यह प्रक्रिया अमल में नहीं लाई जा सकती।

वैक्सीनेशन के बाद बड़ी संख्या में पशुओं की जान बचाई जा सकती है। संजय ने कहा कि जसवां-परागपुर क्षेत्र के किसानों व पशु पालकों की आर्थिक स्थिति से वह भली-भांति परिचित हैं। कई किसानों का जब काेई पालतू पशु बीमारी या अन्य कारणों से दम तोड़ देता है तो पशु पालक अपनी पशु शाला में और पशु खरीदकर लाने में असमर्थ हो जाते हैं।

जिस परिवार का गुजारा ही पशु पालन से ही होता है, तो पशु की मौत के बाद उस परिवार के सदस्य गुरबत में जीने काे मजबूर हो जाते हैं। कहा कि हिमेकयर कार्ड योजना की तरह पशुओं के बीमा की भी व्यवस्था करनी चाहिए और इसके लिए लिमिट की बजाय सभी पशुओं को बीमा के दायरे में लाना चाहिए और तंत्र को किसानों व पशु पालकों को विशेष तौर पर जागरूक करना चाहिए। संजय पराशर ने कहा कि लंपी स्किन डिजीज बीमारी के बेकाबू होते हालात के बीच जिन पशुओं की मौत हो जाती है तो किसानों को जरूर मुआवजा मिलना चाहिए।