प्रदेश के पशुपालकों को अब सर्दियों में नहीं सताएगी हरे चारे की टेंशन

उमेश भारद्वाज। मंडी
हिमाचल प्रदेश के पशु पालकों को अब सर्दियों में होने वाली हरे चारे की किल्लत से झूझना नहीं पड़ेगा। दुधारू पशुओं के लिए प्रोटिनयुक्त घास का आचार यानि साइलेज इनकी दुग्ध क्षमता को बढ़ाने में बतौर राकेट ईंधन कार्य कर रहा है। घास का आचार पशुओं के लिए बेहद पौष्टिक और पाचन में आसान चारा है। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिकों की टीम ने इसकी विधि तैयार की है। घास का आचार किसी भी दुध देने वाले पशु को खिलाया जा सकता है।
विशेष यह है कि यह घास का आचार पड़ोसी राज्य से आने वाले सूखे भूसे से बेहद कम दाम पर स्वयं भी तैयार किया जा सकता है। पंजाब से आने वाला सूखा भूसा 20 से 22 रूपये के दाम पर उपलब्ध होता है। जबकि साइलेज यानि घास का आचार 5-6 रूपये प्रति किलो की लागत से तैयार हो जाता है। घास का आचार बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर द्वारा किसानों को प्रशिक्षण के साथ साईलेज भी उपलब्ध करवाता है। सर्दियों के मौसम में हरे चारे की कमी से कम दुध देने वाले पशुओं के लिए यह एक वरदान साबित होगा।
साइलेज यानि घास का आचार पशु से दुध निकालने के बाद खिलाना चाहिए ताकि दुध में इसकी गंध न आ सके। एक सामान्य पशु को प्रतिदिन 20 से 25 किलोग्राम साइलेज खिलाया जा सकता है। इसमें हरे चारे के बराबर 85 से 90 प्रतिशत पोषक तत्व होते हैं।घास का आचार गायों के लिए एक राकेट इंधन की तरह है। चारे की कमी के समय इसे पशुओं को खिलाकर दूध उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। यह मनुष्यों की तरह सब्जियां बनाम चिप्स खाने जैसा है और एक स्वस्थ्य विकल्प है।
100 किलोग्राम हरा घास लेकर उसे दो दिन धूप में रखें। फिर दो से तीन इंच में छोटा काट लें। साफ जगह पर 4-5 इंच मोटी तह तक बिछाएं और उसमें 5 किलो शीरा या मक्की का आटा, सौ ग्राम यूरिया, एक किलो नमक और एक किलो खनिज मिश्रण मिलाएं। सबको मिलाने के बाद इसे प्लास्टिक के थैले में डालकर ड्रम या एक क्यूविक जमीन में ऐसे अच्छी तरह से दबा दें जिससे उसके अंदर हवा न जा पाए। 45 दिनों में साइलेज तैयार हो जाता है। इसे 6 से 10 सालों तक संरक्षित किया जा सकता है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरिंद्र कुमार चौधरी के नेतृत्व में डा. अरूण शर्मा, डा. संजीव उपाध्याय, डा. डेेजी रानी और डा. शिवानी की टीम ने अन्य सहयोगियों के साथ साइलेज को तैयार किया है।
साइलेज या घास का आचार दुधारू पशुओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। डेयरी उत्पादक इसे पशुओं को खिलाकर दुध उत्पादन बढ़ा सकते हैं। कृषि विश्वविद्यालय कृषि, किसानों और पशुओं के लिए नित नए प्रयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि साइलेज को बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में कार्य किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को साइलेज बनाने के लिए प्रशिक्षण के साथ मुहैया भी करवाया जा रहा है।
कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरिंद्र कुमार चौधरी ने कहा कि सर्दियों में हिमाचल के पशुपालकों के पास जमा कर रखे गए चारे की कमी होती है। चारा सूखा होने के कारण पशुओं द्वारा दुध देने की क्षमता में भी कमी आ जाती है। इस समस्या से निजात पाने के पशुपालक सर्दियों से पूर्व साइलेज बनाकर पशुओं को दिया जा सकता है।