टिड्डी दल से अभी प्रदेश को कोई खतरा नहीं

उमेश भारद्वाज। सुंदरनगर

उत्तर भारत में टिड्डी दल के प्रकोप से अभी हिमाचल प्रदेश को कोई खतरा नहीं है। वहीं हिमाचल प्रदेश में किसानों को जो घास के ऊपर नजर आ रहा है वह शिशु है ना की टिड्डी। यह बात कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर के प्रभारी एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पंकज सूद ने कही। लेकिन फिर भी ऐतिहतान के तौर पर कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की ओर से प्रचार और प्रसार सामग्री पूरे हिमाचल प्रदेश में वितरित की जा चुकी है। विशेष तौर पर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा,ऊना सहित सिरमौर जिलों में प्रचार सामग्री का वितरण ज्यादा किया गया है। इन जिला में ज्यादा एतिहात पंजाब व अन्य पड़ोसी राज्यों और देशों के साथ लगती सीमावर्ती जिले के कारण बरती जा रही हैं। उन्होंने कहा है कि जो किसान घास के ऊपर कीटनाशक देख रहा है वह टिड्डी नहीं है ।

 

इस संबंध में हिमाचल प्रदेश में भी तरह-तरह के वीडियो टिड्डी दल के सक्रिय होने के वायरल किए जा रहे हैं । उन्होंने इस तरह के तमाम वायरल की गई वीडियो को मात्र एक कोरी अफवाह करार दिया है और कहा है कि हिमाचल प्रदेश अभी तक टिड्डी दल के प्रकोप के कहर से दूर है और यह पड़ोसी राज्यों में ही संभव है। उन्होंने किसानों को संदेश दिया है कि वह टिड्डी दल से अपनी फसलों को बचाने के लिए खेत में थोड़ी थोड़ी दूरी पर छोटी-छोटी कचरे की डेरिया बनाकर रखें ताकि आने पर उनको जलाकर टिड्डी को भगाया जा सके। इसके अलावा ताली बजाना व खेतों में धुंआ करना इनको भगाने के परंपरागत उपाय हैं। टिड्डी आवाज को महसूस करता है और अपना रास्ता बदल देता है। इस कारण आजकल इन को भगाने के लिए डीजे का प्रयोग भी किए जाने लगा है। फसलों में खेतों में गहरी खुदाई की जानी चाहिए और उसमें पानी भर देना चाहिए।

इसके अलावा लहसुन मिर्च के अर्क और अलसी के तेल का उपयोग भी किया जा सकता है । उन्होंने कहा कि टिड्डी दल की पहचान किसान आसानी से कर सकता है। उन्होंने कहा कि रेगिस्तानी टिड्डी दल किसानों के सबसे प्राचीन शत्रु हैं। यह मध्यम से बड़े आकार के टिड्डे होते हैं । जब वह अकेले होते हैं तो साधारण कीटों की तरह व्यवहार करते हैं। इनकी संख्या अधिक होने पर यह झुंड बनाकर रहते हैं। इसके बाद वाली अवस्था में भी फसलों और अन्य पेड़-पौधों वनस्पतियों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।