कैमिकल वाली खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपना रहे जिला ऊना के किसान

उज्जवल हिमाचल। ऊना
ऊना- प्राकृतिक खेती के लिए जिला ऊना के किसानों को प्रोत्साहित करने के हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रयास रंग ला रहे हैं। जिला के 9857 किसानों के कैमिकल वाली खेती छोड़ दी है और अब कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। आज जिला ऊना में 754 हेक्टेयर भूमि पर किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
लोअर बसाल के किसान जोगिंदर पाल ने प्राकृतिक खेती की राह पकड़ ली है। कई वर्षों तक रसायनिक खेती करने के चलते उनके खेतों की उर्वरकता कम होने लगी थी और लागत भी बढ़ रही थी। इन्हीं परेशानियों से पार पाने के लिए उन्होंने कृषि विभाग से संपर्क कर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पद्धति के तहत वर्ष 2018 में पालमपुर में ट्रेनिंग लेने के उपरांत एक कनाल भूमि पर प्राकृतिक खेती आरंभ की। परिणामों से संतुष्ट जोगिंदर वर्तमान में 25 कनाल भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
जोगिंदर बताते हैं “रसायनिक खेती से छुटकारा पाने तथा खेती की उत्पादक क्षमता बढ़ाने के लिए आलू, गेहूं के साथ-साथ गोभी, पालक, मेथी, मूली, पालक, बंदगोभी सहित अन्य नकदी सब्जियों का उत्पादन प्राकृतिक तरीके से कर रहा हूं। प्राकृतिक उत्पादों का मार्किट में अच्छा मूल्य मिल रहा है और ग्राहक घर-द्वार से ही सब्जियां खरीद कर ले जाते हैं, जिससे आमदनी दोगुना हुई है।”
प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को राज्य सरकार कई प्रकार प्रोत्साहन भी देती है। जोगिंदर को पॉलीहाउस लगाने के लिए सरकार ने 85 प्रतिशत अनुदान दिया है जिसमें वह प्याज़, गोभी सहित अन्य फसलों के बीज उगाने का कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती पद्धति ने उनकी खेती को बदलने के साथ-साथ उनके जीवन में भी बदलावा लाया है। अब वह देसी बीजों को संरक्षित करने के साथ-साथ आस-पास के उन्नत किसानों को अपने साथ प्राकृतिक खेती करने के लिए जोड़ रहे हैं।
वहीं जोगिंदर की माता निर्मला देवी बताती हैं कि परिवार शुरू से ही खेती से जुड़ा हुआ है। लेकिन रसायनिक खेती करने से हमें अच्छा मुनाफा नहीं मिल पाता था। जब से प्राकृतिक खेती शुरू की, तब से काफी अच्छा मुनाफा हो रहा है।
वहीं डूहल भटवाला के प्रवीण कुमार भी हिमाचल प्रदेश सरकार की प्राकृतिक खेती-खुशहाल किसान योजना के लाभार्थी हैं। उन्होंने बताया कि दिसंबर माह में उनकी ट्रेनिंग आतमा प्रोजैक्ट के तहत जोगिंदर पाल के फार्म पर हुई, जिससे प्राकृतिक खेती के बारे में काफी कुछ सीखने को मिला।
प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके जिला ऊना के किसान मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर तथा कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर का धन्यवाद करते हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलने से किसान रयासन मुक्त फसलों का उत्पादन कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
प्राकृतिक खेती हेतु क्षमता निर्माण
प्राकृतिक खेती के बारे में खंड तकनीकी प्रबंधक रजत दत्ता बताते हैं कि ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान’ योजना के तहत प्रदेश सरकार क्षमता निर्माण पर ध्यान देती है। प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए किसानों को जहाँ ट्रेनिंग प्रदान की जाती है, वहीं सरकार आर्थिक मदद भी देती है। कम से कम छह माह की अवधि से प्राकृतिक खेती कर रहे किसान को देसी गाय की खरीद पर 50 प्रतिशत या अधिकतम 25 हजार रुपए की मदद दी जाती है।
इसके अतिरिक्त प्लास्टिक के तीन ड्रम खरीदने पर 75 प्रतिशत सब्सिडी या अधिकतम 750 रुपए प्रति ड्रम की आर्थिक सहायता, गौशाला में लाइनिंग के लिए 80 प्रतिशत या 8 हजार रुपए तक का अनुदान एवं संसाधन भंडार बनाने के लिए 10 हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती अपनाने वाले जिला ऊना के किसानों को अब तक 3782 प्लास्टिक ड्रम, 239 गौशालाओं में लाइनिंग, 77 संसाधन भंडार और 162 देसी गायें अनुदान पर प्रदेश सरकार की ओर से दी गई हैं।
50 हजार एकड़ भूमि को लाएंगे प्राकृतिक खेती के तहत
वहीं कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने पिछले चार वर्षों में भरसक प्रयास किए हैं। वर्ष 2022-23 के बजट में राज्य सरकार ने 50 हज़ार एकड़ भूमि को प्राकृतिक खेती के तहत लाने की प्रतिबद्धता की है, जिसमें 50 हज़ार किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए तैयार किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक उत्पादों की खेती के लिए दिल्ली और प्रदेश के चयनित स्थानों पर बिक्री केंद्र भी खोले जाएंगे। वहीं प्रदेश के 100 गांवों को राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप प्राकृतिक कृषि गांव के रूप में विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग द्वारा प्रदेश में लगभग 1.70 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दी जा चुकी है।