यहां पर एक ही रात में स्थापित हुए थे 80 शिवलिंग

पीयूष शर्मा। करसोग

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के करसोग क्षेत्र में हर गांव में अपने आप में अपना अलग देव है।जिसकी अपनी समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। इनमें कुछ ग्रामदेवता दूसरे गांव की श्रद्धा और आस्था के प्रतीक है। इनके कारण गांवों का अस्तित्व है।ऐसे ही एक प्राचीन गांव है घाड़। पांगणा उप-तहसील के परेसी पटवारवृत का यह गांव पांगणा और मशोग पंचायत की सीमा से सटा गांव तो है ही अपितु घाड़ करसोग और सुंदर नगर निर्वाचन क्षेत्र का भी सीमांत गांव भी है। यहां जाने के लिए पांगणा से घाड़ तक बस से या छोटी गाड़ियों से पहुंचा जा सकता है।

घाड़ गांव में पांडव कालीन शिव मंदिर प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक शांति व श्रद्धा का केंद्र रहा है। एक किंवदंती के आधार पर सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेंद्र बाली का कहना है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ पर कुछ समय रुके। एक रात इस स्थान पर 80 शिवलिंग स्थापित कर 81वें शिवलिंग की ज्यों ही स्थापना करने लगे तो गांव की एक महिला धान कूटने जाग गई। पांडवों ने इसे अशुभ संकेत मानकर 81वें शिवलिंग को स्थापित नहीं किया।

पांगणा उप-तहसील के साथ करसोग-निहरी तहसील क्षेत्र के लोगों में यह स्थान आज भी छोटी काशी के नाम से श्रद्धा का केंद्र है। घाड़ी में शिकारी देवी की चरणगंगा रुपी पांगणा खड्ड के दाएं तट पर कुछ दूरी पर पांडवों द्वारा स्थापित विश्वनाथ का यह शिव मंदिर वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर अब खंडहर के रुप में अपने गौरवपूर्ण इतिहास को अपने में समाए हैं। खंडहर में बदल चुकी इस अमूल्य धरोहर को देखकर लगता है कि यहां कभी शिखर शैली के मंदिर थे।इस पावन तीर्थ में वर्तमान में मौजूद आमलको को आधार मानें तो ग्यारह मंदिरों के आधार पर एकादश रुद्र के प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद हैं।

हिन्दू संस्कृति के अतीत को देखने की दृष्टि प्रदान करने वाली भद्रमुख की मुस्कुराती दुर्लभ प्रस्तर प्रतिमा बहुत ही अलौकिक, आकर्षक, खूबसूरत और अद्वितीय है। व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमित गुप्ता, संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा, सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की जिला सलाहकार लीना शर्मा का कहना है कि आजादी के बाद 73 से अपने जीर्णोद्धार की बाट जोहते घाड़ी शिवालय की कलात्मक कलाकृतियों, मूर्तियो के विधिवत संरक्षण के लिए पंचायतों, स्वयंसेवी संस्थाओं सरकार या प्रशासन ने आज तक कोई ईमानदार प्रयास किया हो, ऐसा प्रत्यक्ष तो घाड़ी शिवालयों में कुछ दिखता ही नहीं सिवाए आधुनिक सराय भवन निर्माण के।

पुरातत्व, भाषा-कला और संस्कृति विभाग को इस प्राचीन स्थल के संरक्षण व विकास के लिए गांव वाले एक लंबे अरसे से निहार रहे हैं। मंदिर की व्यवस्था के लिए समिति का गठन किया गया है। किरपा राम समिति के प्रधान, गुरुदत्त उप-प्रधान, दयाराम सिंह सचिव, दुर्गा दास शर्मा कोषाध्यक्ष, लीलाधर शर्मा, देशराज शर्मा, सोहन सिंह और दूर्गा दास शर्मा पुजारी, टेकचंद वरिष्ठ कार्यकारी सदस्य हैं। इन सभी सदस्यों ने जन सहयोग से इस मंदिर के पुरातन शैली में निर्माण का बीड़ा उठाया है। मंदिर में सुबह शाम पूजा होती है। हर संक्रांति को विशेष पूजा का आयोजन होता है।

वर्ष के दोनों नवरात्र, वैशाखी, शिवरात्रि, नाग पंचमी को श्रद्धालुगण शिव के दर्शनार्थ समूहों में आकर तथा यज्ञ-हवन मे शामिल होकर अपनी मनोरथ कामनाएं पूरी करते हैं। शिवालयों के साथ नाले में पानी की एक बावड़ी है। पास ही रंडौल में एकाधिक प्राचीन बावड़ियां हैं। इन्हीं में से एक बावड़ी के जल से शिव का दैनिक अभिषेक किया जाता है।

इन बावड़ियों के आस-पास खुदाई करने से जहां मूर्तियां निकलती हैं। वहीं, विषैले सांप भी प्रकट होते हैं। प्राचीन संस्कृति शिल्प कला और पांडवकालीन इतिहास से जुड़ा घाड़ी मंदिर शांत एकांत अप्रतिम सौंदर्य से पूर्ण है। चारों ओर फैली हरियाली, कुछ दूरी पर नीचे बहती पांगणा खड्ड तथा दूर-दूर तक फैली घाटी को देखते ही श्रद्धाल और पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।