गांवों के विकास से ही प्रदेश व देश का विकास संभव : कैप्टन संजय

पांच पंचायतों के वासियों से संवाद कार्यक्रम में शामिल हुए पराशर

उज्जवल हिमाचल। डाडासीबा

कैप्टन संजय ने कहा है कि हमारे प्रदेश व देश का विकास गांवों के विकास से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा था कि भारत गांवों का देश है और अगर गांवों का कायाकल्प कर दिया जाए, तो समूचे राष्ट्र का विकास संभव हो सकेगा। बुधवार को जसवां-परागपुर क्षेत्र के स्यूल पंचायत के पपलोथर, गुरालधार पंचायत के पट्टी, अमरोह पंचायत के खारियां, बाड़ी पंचायत के निचला दड़ब और घमरूर पंचायत के बुहाला में ग्रामीणों से संवाद कार्यक्रम में पराशर ने कहा कि वास्तव में गांवों की खुशहाली में ही देश की खुशहाली निहित है। अब भी हमारे गांवों में आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से काफी विकास होना शेष है।

बेशक सरकारें नियोजित आर्थिक विकास के माध्यम से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों पर विशेष बल दे रही हैं, लेकिन ग्रामीण विकास की दिशा में कृषि, पशुपालन और कुटीर उद्योगों के विकास पर भी शिद्दत से काम करना होगा। इन कार्यों के लिए आधारभूत संसाधनों की उपलब्धता तथा ग्रामीण रोजगार भी ध्यान देना जरूरी है। इससे गांवों में निर्धनता दूर करके सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहे पलायन को रोकने में भी मदद मिल सकेगी।

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संजय पराशर ने कहा कि वह पिछले दो दशक से समाज सेवा के कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाते आ रहे हैं। समुद्र से लेकर महाराष्ट्र तक वह नाविकों से लेकर वहां के निवासियों के हितों की हर मंच पर आवाज उठाते रहे हैं, जब कोरोनाकाल में पहले लॉकडाउन के बाद जब वह अपने ही क्षेत्र के गांववासियों से मिले, तो उनकी समस्याओं को जानकार ताजुज्ब भी हुआ कि देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार आदि के क्षेत्र में मूलभूत संसाधनों का अब भी कहीं न कहीं टोटा है।

कहा कि इसके बाद यह तय कर लिया कि अब गांव में रहकर ही गांवों की समस्याओं को हल करने का प्रयास करना है। इसी कड़ी में इस वर्ष के फरवरी माह में पहला मेडीकल कैंप अपने पैतृक गांव में स्वाणा में ही लगाया। जब पहले कैंप लगाने के बाद फीडबैक मिली कि कई अन्य गांवों के बुजुर्ग भी अपनी आंखों व कानों की जांच करवाना चाहते हैं, तो क्षेत्र के अन्य दूरदराज गांवाें में भी ऐसे स्वास्थ्य शिविर लगाने का निर्णय लिया। क्षेत्रवासियों के समर्थन, स्नेह व सहयोग के कारण वह समय के इस छोटे से अंतराल में 17 मेडीकल कैंपों का आयोजन कर चुके है, जिसमें साढ़े पंद्रह हजार से अधिक लाभार्थी शामिल हुए हैं। पराशर ने कहा कि जसवां-परापगुर क्षेत्र को मोतियाबिंद मुक्त बनाना उनका संकल्प है और इस प्रण को निभाने के लिए वह भविष्य में भी ऐसे शिविर आयोजित करेंगे।

कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में जब हर तरफ भय का वातावरण बन गया, तो उन्हें लगा कि अगर उनके संसाधनों से किसी एक भी व्यक्ति की जान बचती है तो वह परमात्मा के ऋणी रहेंगे। सही समय पर स्वास्थ्य विभाग और क्षेत्र के अस्पतालों में दवाईयां, पीपीई किट्स और मेडीकल उपकरण पहुंचाने का प्रयास किया गया। मन को संतुष्टि मिलती है कि दूसरी लहर में कोरोना संक्रमित मरीजों की सांसों कर डोर को थामे रखने के लिए विदेश से मंगवाए ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर अब भी हृदय रोगियाें के काम आ रहे हैं। संजय ने कहा कि समाजसेवा के जज्बे को वह बचपन से ही जीते आ रहे हैं और अब जसवां-परागपुर क्षेत्र की कर्मभूमि में वह समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के साथ हर हाल में खड़ा रहेंगे और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा व रोजगार को लेकर पूरी ताकत से काम करेंगे।