लोकतंत्र पर हावी हुए लूटतंत्र को रोकने के लिए देश में आम चुनाव हो घोषित : राणा

12 दिन से आसमान छू रहे तेल के रेट पर क्यों मूक और मौन है सरकार

उज्जवल हिमाचल ब्यूराे। हमीरपुर

आसमान पर पहुंची पेट्रोल की महंगाई को सस्ते करने का अब एक ही तरीका है कि देश में आम चुनाव घोषित हो जाएं। असम में चुनाव होने वाले हैं। वहां झांसेबाज सरकार ने उत्पाद शुल्क में 5 रुपए की कटौती कर दी है। पेट्रोल और डीजल के दाम 12 दिन से लगातार बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन देश के हर तबके को प्रभावित करने वाली इस महंगाई पर सरकार मूक और मौन अवस्था में है। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कही है। देश के अधिकांश शहरों में पेट्रोल 98 से 100 रुपए बिक रहा है, जबकि कुछ शहरों में 100 के पार हो चुका है।

पेट्रोल की यह महंगाई अंतरराष्ट्रीय कारणों से बढ़ रही है या उन कारणों से जिन पर सरकार कोई बात नहीं सुनना चाह रही है। राणा ने कहा कि पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों से हर रोज जनता की जेब पर डाका डाला जा रहा है। पिछले तीन वर्षाें में यह तीसरा मौका है कि पेट्रोल की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। सरकार को लगता है कि धीरे-धीरे जनता अधिकतम स्तर पर महंगाई को एडजस्ट करती जा रही है। जिसका नाजायज फायदा सरकार उठा रही है। अब शायद पेट्रोल को सस्ता करने का एक ही तरीका है कि देश में आम चुनाव घोषित हों। असम में 5 रुपए की कटौती करने के बाद वहां रेट 86 रुपए प्रति लीटर हो गया है।

यह दीगर है कि चुनाव के तुरंत बाद वहां भी 10 से 15 रुपए प्रति लीटर तेल का रेट बढ़ा दिया जाए। 2017 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों के समय 2019 तक दाम नहीं बढ़े थे, जबकि पूरे देश में दाम बढ़ रहे थे। मतलब साफ है कि पेट्रोल के दाम पर सरकार आम आदमी को लूटने पर आमादा है। इसके कारण देश के हर वर्ग को लूटा जा रहा है, जबकि मिडल क्लास इस लूट में हाल-बेहाल है। वर्ष 2000 से 2001 में देश पेट्रोलियम पदार्थों की खपत का 75 फीसदी आयात करता था, जबकि 2016 से 2019 तक यह आयात 95 फीसदी हो गया और वर्तमान में अपनी खपत का देश 84 फीसदी आयात कर रहा है। यानी मोदी राज में आयात लगातार बढ़ा है।

2008 में कच्चे तेल का दाम 147 डॉलर प्रति बैरल था, तब पेट्रोल 45 रुपए कैसे बिकता था, जबकि वर्तमान में 61.70 डॉलर प्रति बैरल है, तो पेट्रोल 100 रुपए कैसे बिक रहा है। पेट्रोल के नाम पर मची लूट के सवाल पर इसका जवाब सरकार को देना होगा। मोदी राज में ही जब अंतरराष्ट्रीय तेल के दाम कम हुए थे, तो उन्होंने खुद को नसीब वाला बता कर खूब वाहवाही लूटी थी, लेकिन अब पेट्रोल के नाम पर मची लूट ने जनता को ही बदनसीब बना डाला है। सवाल यह उठता है कि क्या सरकार कंगाल हो चुकी है या वित्तिय कुप्रबंधन का शिकार हो चुकी है। महामारी व महंगाई से लुटी पिटी जनता की जेब से अब आखिरी सिक्का भी निकालने की फिराक में है। राणा ने कहा कि जब देश की जीडीपी रसातल में जा पहुंची है, तो जाहिर तौर पर साफ है कि जनता की कमाई भी घटी है।

अब बेचारी जनता पूर्व में की गई बचत के सहारे समय काट रही है। डीजल-पेट्रोल के साथ गैस के सिलेंडर के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसी लूटतंत्र में आम नागरिक अपनी जेब को कितना और कैसे संभाल सकता है। 2020 से लेकर अब तक गैस का सिलेंडर 175 रुपए महंगा हुआ है। सरकार को खुद बताना चाहिए कि इसके क्या कारण हैं। राणा ने कहा कि लोकतंत्र को लूटतंत्र बना चुकी सरकार और सिस्टम से अब देश का भरोसा पूरी तरह उठ चुका है, लेकिन तानाशाह सरकार ऐसे में कोई और शगुफा और झांसा छोड़ दें, तो कोई हैरानी नहीं होगी।