‘नई राहें, नई मंजिलें’ योजना के तहत विकसित होगी पौंग झील, पर्यटन को लगेंगे पंख

उज्जवल हिमाचल। कांगड़ा

प्रकृति के सौंदर्य से परिपूर्ण हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की आवश्यकता है। इसके मद्देनजर हिमाचल सरकार ने ‘‘नई राहें, नई मंजिलें’’ नामक योजना शुरू की है। इस योजना के तहत प्रदेश के अनछुए क्षेत्रों को पर्यटन की दृष्टि से संवारने का कार्य किया जा रहा है। इसी कड़ी में जिला कांगड़ा में स्थित पौंग डैम झील को अब सरकार ने पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए इस योजना में डाला है और झील के मध्य स्थित रेंसर गढ़ी टापू की सुंदरता को निखारने की भी योजना बनाई है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए साहसिक खेलीं को भी झील में विकसित करने की योजना है। इसकी पुष्टि हमीरपुर स्थित वन्यप्राणी मंडल के डीएफओ राहुल रोहाणे ने भी पुष्टि की है।

उगते-डूबते सूरज की किरणों से झील का नजारा और भी मनमोहक

एक तरफ धौलाधार की सफेद चादर तो दूसरी और पंजाब का विशालकाय मैदानी इलाके और दोनों ओर शानदार घने जंगल और विशाल पहाड़ों से घिरी हुई यह झील शहर के जीवन के शोर-शराबे से दूर स्वर्ग जैसी जगह लगती है। उस पर उगते-डूबते सूरज की किरणों से झील का नजारा और भी मनमोहक हो जाता है। यह जगह भ्रमण करने के बाद हर किसी को अपने पूरे जीवन के लिए याद रखने के लिए एक अद्भुत अनुभव देती है। पर्यटकों की भीड़ को महसूस करने के लिए भी यह झील साहसिक गतिविधियों के शौक़ीन लोगों के लिए एक असाधारण गंतव्य है। तैराकी के अलावा विभिन्न पानी के खेल भी यहां आयोजित किए जाते हैं।

झील की प्राकृतिक सुंदरता पहाड़ियों और परिदृश्यों का एक सुखद दृश्य प्रस्तुत करती है जो अविस्मरणीय है। इसके अलावा जलाशय एक पक्षी अभयारण्य भी है, जिसे महाराणा प्रताप सागर अभ्यारण्य के रूप में जाना जाता है। अभ्यारण्य विविध वनस्पतियों और जीवों व सर्दियों में प्रवासी पक्षियों का घर है। यहाँ एक वाटर स्पोर्ट्स सेंटर भी स्थापित है जो कुछ साहसिक और मछली पकड़ने के लिए एक अच्छा स्थान है।

मसरुर मंदिर…

मसरुर मंदिर हिमाचल प्रदेश की पौंग झील के मुख्य द्वार नगरोटा सूरियां से सात किलोमीटर पूर्व की ओर स्थित है। यह एक धार्मिक पर्यटन स्थल है। एक ही चट्टान को तराश कर बनाए गए इस मंदिर में 15 शिखर मंदिरों वाली संरचना गुफाओं के अंदर मनमोहक दृश्य पेश करती है। पौंग डैम – ब्यास नदी पर बाँध बनाकर बनाये गए इस डैम का निर्माण साल 1975 में किया गया था। इस डैम को महाराणा प्रताप सागर नाम दिया गया था। इसे पौंग जलाशय या पौंग बांध के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटकों के लिए यह जगह काफी खूबसूरत और मनोरम दृश्य वाला है। पौंग झील के किनारों पर बैठकर एंगलिंग करने से बेहतर क्या हो सकता है? यदि आप झील के आस-पास घूमने जाते हैं, तो इस मन-व्यायाम गतिविधि का अनुभव अवश्य करें।

मेहमान परिंदे करते है आकर्षित

बर्ड वाचिंग एक ऐसी गतिविधि है जो आगंतुकों को महाराणा प्रताप सागर झील की ओर आकर्षित करती है। सर्दियों के महीनों अक्टूबर से मार्च के दौरान, प्रवासी पक्षियों का झुंड महाराणा प्रताप सागर झील में आता है। यह झील कांगड़ा घाटी के सिलावन परिवेश में बसा है, इसलिए यह पक्षियों, मछलियों और जानवरों की प्रमुख प्रजातियों का घर बन गया है। उत्तरी लुगविंग, स्पॉट-बिल्ड डक, बारहैडेड गीज, रूडी शेल्डक, उत्तरी पिंटेल सहित कई और लुप्तप्राय पक्षियों की झलक झील में देख सकते हैं।