जंगलों की आग को रोकने के लिए जन सहभागिता जरूरी-राकेश कटोच

जतिन लटावा । जोगिन्दर

आग की दृष्टि से जोगिन्दर नगर वन मंडल में 45 बीट अति संवेदनशील, पकड़े जाने पर है सजा का कड़ा प्रावधान
जोगिन्दर नगर, 12 अप्रैल-ग्रीष्म मौसम के आते ही हिमाचल प्रदेश में जंगली आग लगने की घटनाएं भी बढ़ने लगती हैं। जंगली आग के कारण न केवल हमारी अमूल्य वन संपदा को नुकसान होता है बल्कि हमारा पर्यावरण भी प्रभावित होता है।

सबसे अहम बात तो यह है कि जंगली आग के कारण असंख्य जीव जन्तुओं को भी अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है। लेकिन जंगलों की आग को रोकने के लिए जहां हमारी सरकार सजग व सतर्क है तो वहीं वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी भी इसे रोकने के लिए दिन रात मैदान में डटे हुए हैं। परन्तु इन सब प्रयासों से कहीं आगे बढक़र जंगली आग को रोकने में जन सहभागिता एक बहुत बड़ी भूमिका निभाती है।

इस संबंध में वन मंडलाधिकारी जोगिन्दर नगर राकेश कटोच से बातचीत की तो उनका कहना है कि जंगलो की आग को रोकने में विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ-साथ लोगों की सतर्कता व जन सहभागिता बेहद जरूरी है। जंगल में आग लगने की घटना बारे लोग तुरन्त वन रेंज या फिर मंडलीय कार्यालय में स्थापित कंट्रोल रूम में जानकारी दे सकते हैं।

वन विभाग ने जोगिन्दर नगर, सरकाघाट व पधर में अग्रिशमन विभाग को भी अलर्ट पर रहने को कहा है ताकि जरूरत पडऩे पर जंगली आग पर तुरंत काबू पाया जा सके। साथ ही कहा कि ग्रामीण खेतों की साफ-सफाई व झाडिय़ों इत्यादि को जलाने के कार्य को जंगल से कम से कम 100मीटर की दूरी पर ही करें तथा इसकी जानकारी संबंधित वन विभाग के अधिकारी को देना भी जरूरी है।

उन्होने बताया कि जोगिन्दर नगर वन मंडल क्षेत्र में जंगलों की आग को रोकने के लिए 35 फायर वॉचर भी तैनात किये गए हैं तथा विभाग के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों की छुट्टियां भी रद्द कर दी हैं।

उन्होने जंगलों में आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिये पंचायत स्तर पर लोगों को जंगलों में आग न लगाने के लिये जागरूक करने का भी प्रयास किया है ताकि हमारे अमूल्य वन संपदा को आग से बचाया जा सके। साथ ही जायका के माध्यम से पंजीकृत समितियों का भी गठन किया गया है।

राकेश कटोच ने बताया कि जोगिन्दर नगर वन मंडल के अधीन लगभग 700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आता है। यहां की कुल 56 फॉरेस्ट बीट में से 45 आग की दृष्टि से अति संवेदनशील है जिनमें चीड़ के अधिकत्तर जंगल पाए जाते हैं।

उनका कहना है कि लोग चीड़ के जंगल में इस दृष्टिकोण से आग लगा देते हैं कि घास अच्छी उगेगी लेकिन ये सब केवल मिथक है। चीड़ के जंगलों से केवल घास ही नहीं मिलती है बल्कि लोगों का रोजगार भी जुड़ा हुआ है।
जंगलों में आग लगाने पर हो सकती है

दो साल की जेल राकेश कटोच ने बताया कि भारतीय वन अधिनियम-1927 के तहत जंगल में आग लगाने पर अनुभाग 26, 32 व 33 के तहत पांच हजार रुपये तक का जुर्माना या फिर दो साल की जेल या दोनों सजाएं हो सकती है। इस कानून के तहत जंगलों में आग लगाना गैर जमानती अपराध है।

साथ ही दोषी व्यक्ति को संबंधित वन विभाग या पुलिस के अधिकारी बिना वारंट गिरफ्तारी भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इंडियन पीनल कोड के तहत भी सजा का कड़ा प्रावधान है।

जंगलों को आग से बचाना सबकी जिम्मेदारी

उन्होने कहा कि जंगलों को आग से बचाना केवल वन विभाग की ही जिम्मेदारी नहीं है बल्कि ऐसे तमाम व्यक्ति भी जिम्मेदार हैं जो किसी न किसी रूप में सरकारी कोष से वेतन, मानदेय इत्यादि के तौर पर धन प्राप्त करते हैं।

जंगलों में आग के कारण असंख्य जीव जंतुओं के जीवन पर ही संकट पैदा नहीं होता है बल्कि जंगली जानवरों द्वारा आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रुख करने से लोगों का जीवन भी खतरे में पड़ सकता है।

साथ ही जंगलों के जलने से पर्यावरण को खतरनाक कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनो ऑक्साइड से नुकसान ही नहीं पहुंचता है बल्कि जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्या से भी जूझना पड़ रहा है।

ऐसे में जंगली आग को रोकने में सामाजिक भागीदारी बेहद जरूरी है तथा सभी लोग एक जागरूक नागरिक होने के नाते अपनी जिम्मेदारी निभाएं ताकि हमारी इस अमूल्य वन संपदा को नष्ट होने से रोका जा सके। उन्होने कहा कि यदि आज हमारे वन सुरक्षित हैं तभी हमारा जीवन सुरक्षित रह सकता है।