नूरपुर में श्री कृष्ण कथा का भव्य आयोजन किया गया

उज्ज्वल हिमाचल। नूरपुर

नूरपुर स्थानीय नगर परिषद हॉल नूरपुर में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का भव्य आयोजन किया गया। जिसमें सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी त्रिपदा भारती जी ने भक्त सूरदास प्रसंग को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने बताया हमारे मानव तन का एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की भक्ति करना है। किंतु आज का मानव इस लक्ष्य को विस्मृति कर बैठा है। आज हमें संसार के समस्त कार्यों का स्मरण रहता है किंतु जो परमात्मा हमारे जीवन की धूरी है। उसे हम भूल चुके हैं। हमारी यही भूल हमारी अशांति का कारण है।

इसलिए भक्त सूरदास जी का जीवन चरित्र हमें इसी भूले हुए मार्ग का बोध करवाता है। इसके अतिरिक्त साध्वी जी ने कहा, सूरदास जी जन्म से ही नेत्रहीन थे। किन्तु फिर भी उन्होंने अपने भीतर प्रभु की विविध लीलाओं को देखा। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनके रचित पदों में देखने को मिलता है। लेकिन ऐसा तब संभव हो पाया। जब उनके जीवन में गुरु वल्लभाचार्य जी का आगमन हुआ। हमारे धार्मिक ग्रंथ भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि जब एक पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ संत हमें दीक्षा प्रदान करता है, तो वह हमारा तृतीय नेत्र को खोलकर हमारे भीतर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन करवा देते हैं।

वास्तव में उस परमात्मा को देखने के लिए इन भौतिक नेत्रों की आवश्यकता नहीं है। उस ईश्वर को तो प्रत्येक मानव गुरु द्वारा प्रदान की गई दिव्यदृष्टि से ही देख सकता है। इसलिए हमें आवश्यकता है, कि हम एक पूर्ण गुरु की शरणागत होकर उस ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर अपनी जिंदगी के लक्ष्य को पूर्ण करें। यही समस्त शास्त्रों का सार है। प्रथम दिवस ज्योति प्रज्वलन की गई । इसके लिए श्रीमति आशा वर्मा ई.ओ डॉक्टर चंदर जी, श्री अजय पुन्नी जी, श्री वकील डोगरा जी, श्रीमति मंजू महाजन ने किया। इसके अतिरिक्त कथा में सुमधुर भजनों का गायन भी किया गया और कथा का समापन प्रभु की पावन पुनीत आरती के साथ किया गया।

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स्थानीय नगर परिषद हॉल नूरपुर में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का भव्य आयोजन किया गया। जिसमें सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी त्रिपदा भारती जी ने भक्त सूरदास प्रसंग को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने बताया हमारे मानव तन का एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की भक्ति करना है। किंतु आज का मानव इस लक्ष्य को विस्मृति कर बैठा है। आज हमें संसार के समस्त कार्यों का स्मरण रहता है किंतु जो परमात्मा हमारे जीवन की धूरी है। उसे हम भूल चुके हैं। हमारी यही भूल हमारी अशांति का कारण है। इसलिए भक्त सूरदास जी का जीवन चरित्र हमें इसी भूले हुए मार्ग का बोध करवाता है।

इसके अतिरिक्त साध्वी जी ने कहा, सूरदास जी जन्म से ही नेत्रहीन थे। किन्तु फिर भी उन्होंने अपने भीतर प्रभु की विविध लीलाओं को देखा। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनके रचित पदों में देखने को मिलता है। लेकिन ऐसा तब संभव हो पाया। जब उनके जीवन में गुरु वल्लभाचार्य जी का आगमन हुआ। हमारे धार्मिक ग्रंथ भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि जब एक पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ संत हमें दीक्षा प्रदान करता है, तो वह हमारा तृतीय नेत्र को खोलकर हमारे भीतर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन करवा देते हैं। वास्तव में उस परमात्मा को देखने के लिए इन भौतिक नेत्रों की आवश्यकता नहीं है। उस ईश्वर को तो प्रत्येक मानव गुरु द्वारा प्रदान की गई दिव्यदृष्टि से ही देख सकता है।

इसलिए हमें आवश्यकता है, कि हम एक पूर्ण गुरु की शरणागत होकर उस ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर अपनी जिंदगी के लक्ष्य को पूर्ण करें। यही समस्त शास्त्रों का सार है। प्रथम दिवस ज्योति प्रज्वलन की गई । इसके लिए श्रीमति आशा वर्मा ई.ओ डॉक्टर चंदर जी, श्री अजय पुन्नी जी, श्री वकील डोगरा जी, श्रीमति मंजू महाजन ने किया। इसके अतिरिक्त कथा में सुमधुर भजनों का गायन भी किया गया और कथा का समापन प्रभु की पावन पुनीत आरती के साथ किया गया।

संवाददाताः विनय महाजन

 

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