इस रेल ट्रैक पर सफर करने से थमने लगती हैं लाेगाें की सांसे

जतिन लटावा। जाेगिंद्रनगर

1932 में शानन परियोजना से पैदा हुई बिजली से पाकिस्तान की राजधानी लाहौर जगमगा उठी थी। इस ट्रैक का अपना महत्व है। इस पर बिना इंजन वाली रोप वे ट्रॉली से सामान ढोया जाता रहा है। यह ट्रॉली आपको आज भी देखने को मिल जाएगी। यह रेलवे ट्रैक 75 डिग्री खड़ी पहाड़ी से जब गुजरता है, इस पर चलने वाली ट्रॉली में बैठे लोगों की सांसें थमने लग जाती हैं। पहले यह ट्रॉली बांध तक जाती थी। कथयाडू से लेकर जीरो प्वाइंट के रास्ते को खूनी घाटी के नाम से भी जाना जाता है। यहां कई लोगों की जान जा चुकी है। आजादी से पहले लाहौर को बिजली से रोशन करने वाले शानन पन विद्युत प्रोजेक्ट के निर्माण में हिमाचल प्रदेश के शानन-जोगिंद्रनगर नैरोगेज रेलवे ट्रैक ने अहम भूमिका निभाई थी।

1925 के बिछाए गए इस ऐतिहासिक रेलवे ट्रैक का निर्माण कर्नल बैटी के शानन प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली भारी मशीनरी को जोगिंद्रनगर से बरोट पहुंचाने के लिए किया गया था। हैरानी इस बात की है कि अब परियोजना प्रबंधन और रेलवे विभाग ने ट्रैक के संरक्षण के लिए हाथ पीछे खींच लिए हैं। संरक्षण के अभाव में ऐतिहासिक ट्रैक जर्जर है। भू-स्खलन से रेल पटरी तहस-नहस हो चुकी है। करोड़ों रुपये की आमदनी कमाने वाले शानन परियोजना प्रबंधन ने भी इसका दोहन कर उसे बदहाली पर छोड़ दिया है। अगर इसे संवारा जाए तो यह एतिहासिक धरोहर पर्यटन का आकर्षण बन सकती है।

बरोट में ऊहल नदी पर बने जलाशय से पाइपों से पानी 3280 फीट पर स्थित शानन में बिजली घर तक लाया जाता है। इस पावर प्रोजेक्ट पर पिछले कई वर्षों से पंजाब और हिमाचल सरकार में खींचतान है। यह प्रोजेक्ट हिमाचल में बना है जबकि इसकी बिजली पंजाब लेता है। हिमाचल को अभी तक इसका हिस्सा नहीं मिल पाया है। मंडी जिला मुख्यालय से इस स्थल की दूरी 65 किमी है। बरोट मंडी जिले का आखिरी गांव है। इस स्थल तक पहुंचने के लिए मंडी-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग से होकर जाना पड़ता है। एशिया के सबसे पहले रोप-वे पर दौड़ने वाली हेरिटेज ट्रॉली के रोमांच का सफर जल्द शुरू होगा। इसका लाभ पर्यटकों को भी मिलेगा।

करीब दो करोड़ रुपये खर्च कर वर्षों पुरानी हेरिटेज रोप-वे को नया स्वरूप दिलाने का 80 प्रतिशत से अधिक का कार्य पूरा भी हो चुका है। इस रोप-वे ट्रॉली को नया रूप देने के लिए पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड के इंजीनियरों ने पूरी ताकत झोंक दी है। अधिकारियों के मुताबिक, शानन से 18 नंबर तक करीब दो किलोमीटर के ट्रैक के 2000 नए स्लीपरों को बदल दिया गया है। 18 नंबर से वींचकैंप तक के शेष ढाई किलोमीटर के ट्रैक पर नए स्लीपर बिछाने का कार्य जारी है। करीब 95 साल पुराने इस रोप-वे पर दौड़ रही ट्रॉली के ढांचे को भी नया स्वरूप दिलाया जाएगा। रेलगाड़ी के डिब्बे की तरह ट्रॉली को विकसित करने के लिए परियोजना प्रबंधन कार्य कर रहा है।

परियोजना के अधीक्षण अभियंता हरीश शर्मा ने बताया कि नए स्वरूप में ट्रॉली के ढांचे में बैठने के भी पुख्ता प्रबंध होंगे। एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेशों पर रोप-वे को दुरुस्त करने के निर्देश जारी हुए थे। हेरिटेज ट्रॉली को बरोट तक चलाने पर भी परियोजना प्रबंधन ने हामी भरी है। प्रथम चरण में वींचकैंप तक ट्रॉली को दौड़ाया जाएगा। इसके उपरांत बरोट के खस्ताहाल ट्रैक को दुरुस्त कर ट्रॉली बरोट तक पहुंचाने पर काम होगा। मौजूदा समय में परियोजना के पैन स्टॉक और पाइपलाइन की देखरेख और मरम्मत के लिए हेरिटेज ट्रॉली को परियोजना के कर्मचारियों के लिए प्रयोग किया जाता है।

एसई हरीश शर्मा शानन परियोजना जोगिंद्रनगर का कहना है कि शानन परियोजना के ऐतिहासिक रोप-वे को नया स्वरूप दिलाने के लिए दो करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। पहले वींचकैंप तक स्लीपरों के बदलने के कार्य का पूरा हो गया है है। जल्द रोप-वे पर रोमांच का सफर शुरू होगा। बरोट तक ट्रॉली के आवागमन पर भी परियोजना प्रबंधन के उच्च अधिकारियों से पत्राचार किया गया है।