कोरोना के साये में शिक्षक, कोई नहीं ले रहा सुध

एसके शर्मा। बड़सर

उपमंडल बड़सर में चुनिंदा शिक्षकों की ड्यूटी संगरोध केंद्रों में पिछले 11 दिन से जारी हैं। हर संगरोध केंद्र में बाहरी राज्यों जैसे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद व गोवा सहित अन्य क्षेत्रों से आए हुए लोगों को रखा गया है, जिनकी देखभाल और निगरानी का जिम्मा शिक्षकों पर थोप दिया गया है। इन शिक्षकों को न तो कोई अवकाश मिल रहा है और न ही इनकी ड्यूटी के बीच कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई है। जिन शिक्षकों को कोरोना संदिग्ध लोगों की देखभाल के जिम्मा दिया है।

उनको न तो संगरोध केंद्र इंचार्ज ने मास्क और दस्ताने दिए हैं और न ही सेनेटाइजर। कमरों में रोज सेनेटरज़ार स्प्रे का नियम है, मगर वह तो अधिकांश जगह नहीं किया जा रहा है। बाहर से आए लोगों को खाना देने में भी दिक्कत आ रही है, क्योंकि मिड-डे-मील वर्कर स्कूल में खाना बनाने से डर रहे हैं और घर से खाना लाना और देना भी सरल नहीं है। बताते चलें कि संगरोध केंद्रों के इंचार्ज भी घर बैठे वाट्सएप पर शिक्षकों को नए नए आदेश दे रहे हैं और खुद स्कूल आने से परहेज कर रहे हैं।

इतना ही नहीं, एक शिक्षक की कई बार 36 घंटों में 24 घंटे ड्यूटी लग रही है, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, मगर इस बात का प्रशासन पर कोई असर नहीं है। बाहर से आ रहे लोग भी उपस्थित शिक्षकों से मास्क, सेनेटरजार और खाने की मांग कर रहे हैं, मगर जिन शिक्षकों की ड्यूटी है, उनको ये सुविधाएं खुद भी नहीं मिल रही। ये शिक्षक सुबह 5 से दोपहर 1 बजे, दिन में 1 से 9 बजे और रात को 9 बजे से सुबह 5 बजे तक ड्यूटी दे रहे।

एवरेस्ट पब्लिक स्कूल में ऑनलाइन एडमिशन के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

http://eepurl.com/g0Ryzj

इनके लिए स्कूल में चायपान या खाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। प्रशासन के आदेश हैं कि शाम 7 बजे से सुबह 7 बजे कर्फ्यू का उल्लंघन न हो, मगर इन शिक्षकों को बिना पास, बिना कोई आज्ञा पत्र, बिना किसी पहचान पत्र के संगरोध केंद्र ड्यूटी पर भेजकर गश्ती पुलिस दल का कोपभाजन बनाया जा रहा है। प्रशासन पैक्ड फ़ूड सप्लाई की व्यस्था संगरोध केंद्रों हेतु अब तक नहीं कर सका है। शिक्षकों की ड्यूटी शिफ्ट 14 दिन बाद बदलकर नए शिक्षक लगाने तक की कोई योजना नहीं बनाई गई है, यानी जो शिक्षक संगरोध केंद्र ड्यूटी में फंस गए हैं।

उनको न तो कोई छुट्टी मिलेगी और न ही इस काम से कभी निजात। अनेकों शिक्षकों को कोई भी ड्यूटी नहीं दी गई है और जिन शिक्षकों की ड्यूटी लगी है, उनकी परवाह करने वाला कोई नहीं है। वहीं, ऑरेंज जोन से आए हुए लोग भी संस्थागत संगरोध केंद्र यानी स्कूलों में ठहराए हैं, जबकि इनको स्कूल में ठहराने की बजाय घर में ठहराने का प्रावधान है, जबकि इनके कोरोना से जुड़े सैंपल लेने में भी सुस्त विभाग एक सप्ताह लगा रहा है, जिससे सेवारत शिक्षक व उनके परिवार कोरोना के साये में आ सकते हैं, मगर शिक्षकों की जान और सुरक्षा शायद अधिक मायने नहीं रखती है।

सील की गई पंचायत बिझड़ी में संगरोध केंद्र तक नहीं खोला गया है और वहां के बाहर से आए हिमाचली यहां घंगोट स्कूल में रखे गए हैं, जिससे घंगोट की जनता में रोष है। गौर रहे कि कोरोना के बढ़ते कहर से लोग स्कूलों में बच्चों को भेजने से और सरकारी स्कूलों में एडमिशन करवाने से पीछे हट रहे हैं, क्योंकि बाहर से आए हुए जो लोग कोरोना पॉजिटिव पाए जा रहे हैं। उनको सरकारी स्कूलों में ही रखा जा रहा है और निजी स्कूलों को इससे मुक्त रखा गया है।

ऐसे में सरकारी स्कूलों में कोरोना वायरस होने की संभावना के चलते लोग इन स्कूलों में बच्चों को नहीं भेजना चाहते हैं। ऐसे में सवाल पनप रहा है कि कोरोना से सरकारी स्कूलों के नामांकन में गिरावट
आने का जिम्मेदार कौन होगा और नामांकन कम होने पर तालाबंदी के काम में भी सरकार देरी नहीं करती है।

उधर, शिक्षा निदेशक हमीरपुर बलबंत सिंह ने बताया कि सरकार के आदेशों के चलते स्कूलों को संगरोध केंद्र बनाया गया है व इनमें शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है।