अमेरिका सेना की वापसी से भारत की अफगान नीति को लेकर दुविधा जारी

उज्जवल हिमाचल डेस्क…

जो बाइडन को अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना का वापिस बुला लिया। इससे वहां की सुरक्षा तालिबान पर गहरा प्रभाव पड़ा अब अफगानिस्तान के तालिबान का वर्चस्व बढ़ता ही जा रहा है। अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत क्षेत्र पर तालिबान का कब्जा हो गया है। जिसके चलते भारत ने भी अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से वापिस बुला लिया है। अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में बढती भगीदारी के संकेत ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। तालिबान से जारी संघर्ष के बीच अफगानिस्तान के सेना प्रमुख जनरल मोहम्मद अहमदजई भारत दौरे पर आ रहे हैं। इस यात्रा को भारत और अफगान के नजरिये से काफी अधिक माना जा रहा। क्योंकि अफगान में राजनीतिक अस्थिरता हुआ है तो भारत को इसकी किमत चुकानी पड़ी है। काबुल में राजनीतिक स्थिरता, भारत की अफगान नीति की पहली शर्त है। वर्ष 1999 में इंडियन एयरलाइंस का एक विमान काठमांडू से नई दिल्ली आने के क्रम में हाइजैक करते हुए कंधार ले जाया गया था।

वर्ष 1989 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के दखल और 2001 के अमेरिकी युद्ध से भारत ने स्वयं को रणनीतिक तौर पर दूर ही रखा था, लेकिन सोवियत संघ की वापसी के बाद उपजी राजनीतिक अस्थिरता के कारण अफगानिस्तान की धरती को आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया गया। कुछ ऐसा ही खतरा अमेरिकी सेना की वापसी के बाद होने की आशंकाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। ऐसी परिस्थिति में भारत को राजनीतिक स्थिरता के लिए हरसंभव प्रयास करने की जरूरत है। यह सच है कि भारत के पास सीमित विकल्प हैं, परंतु इसके बावजूद क्षेत्रीय शक्तियों मसलन रूस और ईरान समेत दुनिया के अन्य देशों के साथ मिलकर हमें प्रयासरत रहना होगा। परंतु इस बात का ध्यान रखना होगा कि अफगानिस्तान में हिंसा न हो और मानवाधिकार भी सुरक्षित रहें। हालांकि अच्छी बात यह है कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तालिबान द्वारा हाल ही में की गई हिंसा की आलोचना की है।

जयशंकर ने कहा, दुनिया हिंसा और बल प्रयोग के जरिये कब्जा करने के विरुद्ध है। इस तरह के कदम को वैधता नहीं दी जानी चाहिए। भारत को अपने पूर्व के घोषित अफगान नियंत्रित, अफगानी स्वामित्व और अफगान नेतृत्व के संकल्प पर कायम रहना चाहिए। अफगानिस्तान की व्यापक और दीर्घकालिक शांति की कुंजी इसी फामरूले के तहत संभव है। अफगानिस्तान में चाहे किसी भी गुट की सरकार बने, हमें उनके साथ राजनीतिक संबंध मजबूत करते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है। तालिबान को लेकर भी हमें सकारात्मक नजरिया रखना चाहिए। एक बड़े कूटनीतिक कदम के तहत तालिबान ने कश्मीर को भारत को आंतरिक मामला बताया है। इसके अलावा, तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान में मदद मुहैया कराने और पुन-नर्माण कार्य जारी रखने के लिए वह भारत का स्वागत करेगा। भारत के लिए यह बड़ी राहत की बात है।

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पिछले 20 साल में अफगानिस्तान में ऊर्जा संयंत्र, बांध, राजमार्ग, स्कूल और संसद भवन के निर्माण में भारत ने अहम भूमिका निभाई है। अफगानिस्तान के सैनिकों को ट्रेनिंग समेत अन्य सुविधाएं भी प्रदान की हैं। भारत की योजना अफगानिस्तान में सड़क और रेल लाइन बिछाने तथा इसके माध्यम से मध्य एशिया तक तेजी से अपनी पहुंच कायम करने की है। इन सभी परियोजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आने वाले दिनों में काबुल की सरकार के साथ हमारे संबंध कैसे होंगे।