फुकरापंथी सबसे ज्यादा घातक : डॉ. अवनिंदर

संयुक्त निदेशक टीएमसी ने जीएवी के छात्रों को किया अगाह

उज्जवल हिमाचल। कांगड़ा

सफलता उसी के कदम चूमती है, जिसमें कुछ कर गुजरने का जज्बा हो अन्यथा जिंदगी बोझ बन कर रह जाएगी। छात्र मन लगा कर पढ़ाई करें, अफवाहों पर ध्यान न दें और असफलता का आकलन कर उससे भी बड़ी सफलता की सीढ़ी बनाएं। यह उद्गार थे, टांडा मेडिकल कॉलेज के संयुक्त निदेशक डॉ. अवनिंदर शर्मा के। सीबीएसई के वीरगाथा कार्यक्रम के अंतर्गत डॉ. शर्मा ने अपने जीवन का वृतांत सुनाकर छात्रों को सफलता के कई मंत्र दिए। एचएएस में सेकंड टापर रहे अवनिंदर ने बताया कि सैनिक स्कूल में हिंदी माध्यम के छात्रों के बी सेक्सन में रखा जाता है और यहीं से उन्हें कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिली, जिसमें जीएवी के प्रधानाचार्य सुनीलकांत चड्ढा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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वह कई कक्षाओं में टॉपर रहे और सफलता उनके कदम चूमती रही, लेकिन यही खुमारी उनके जीवन में बाधक बन गई। सैन्य ऑफिसर बनने का एकमात्र सपना उनकी खुमारी में ही धुल गया और जब होश आया, तो दुराहे पर खड़ा पाया। एक वर्ष व्यर्थ कोचिंग में गंवाने के बाद पशु चिकित्सा में एडमिशन हुआ और कुछ वर्ष फुकरापंथी में गंवा दिए, लेकिन बाद में टॉप किया और गांव में ही पशु चिकित्सक बन गया। उसी दौरान सैन्य आफिसर बनने की धुन फिर सवार हो गई और मेहनत कर मुकाम हासिल कर लिया। मेजर का रैंक हासिल कर सम्मान पाया। घुड़सवारी की ट्रेनिंग के दौरान गिर गया और सारे सपने भी पल में ही घायल हो गए।

कुछ वर्ष बाद नौकरी छोड़ गांव में वापस आ गया, तो कई तरह की फजीहतों का सामना करना पड़ा। बच्ची के साथ घर में ही दुबके रहना जिंदगी की नियति बन गई। एक दिन पत्नि ने झकझोरा, तो एचपीएससी करने की ठानी, लेकिन हर कोई कहने लगा कि यह आप के वश में नहीं। दिल से मेहनत कर एचएएस में सेकंड टापर रहा और सात वर्ष एसडीएम की तैनाती के बाद अब संयुक्त निदेशक के पद पर काबिज हूं। सिफारिसों को दरनिर कर प्रतिभा व विश्वास के बल पर जेएनयू में सहायक प्रोफेसर पद भी पाया।बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. शर्मा का प्रधानाचार्य सुनीलकांत चड्ढा व उप प्रधानाचार्य सुजाता शर्मा ने धन्यवाद किया।