प्रयोगशालाओं की हो अच्छे से कार्यकुशलता व जांच

विनय महाजन। नूरपुर

नुरपुर मरीज को जांच रिपोर्ट में सफेद रक्त कण में भारी कमी बताई गई, डॉक्टर इसी आधार पर इलाज करते रहे । पुनः जांच में रक्त कण में कमी नहीं पाई गई, टाइफाइड निकला। किसी मरीज का इलाज अक्सर डॉक्टर तब ही शुरू करते हैं जब तक मरीज को ख़ून इत्यादि की जांच रिपोर्ट को देख न ले। जैसे कि बुखार भी है तो उसकी भी किस्म देखी जाती है कि यह मलेरिया या टाइफाइड अथवा कोई और तो नहीं है।

लेकिन जब प्रयोगशाला द्वारा रोगी को रिपोर्ट ही गलत प्रदान की गई हो तो उस मरीज का उचित इलाज किस प्रकार हो सकता है। यह घटना हुई है गंगथ निवासी करण सिंह के साथ। जिसे एक स्थानीय लैब द्वारा उनके सफेद रक्त कण में भारी कमी की रिपोर्ट मुहैया करवाई गई। डॉक्टरों द्वारा इस रिपोर्ट के आधार पर उपचार शुरू किया गया। लेकिन स्वास्थ्य में लगातार गिरावट तथा तेज बुखार में सुधार ना होते देख उनको परिजन पठानकोट के एक निजी हस्पताल में उपचार लेने के लिए बाध्य होना पड़ा।

वहां उनके खून की जांच पर उन्हें टाइफाइड बुखार पाया गया। रक्त कण में कमी होने जैसी कोई बात नहीं पाई गई। करण सिंह के परिवारजनों ने स्वास्थ्य विभाग हिमाचल प्रदेश से आग्रह किया है कि प्रयोगशालाओं की कार्यकुशलता व जांच प्रणाली को जांचा जाए ताकि अन्य मरीज मरीजों से इस तरह का खिलवाड़ ना हो।

इस विषय मे जिला कांगड़ा के चीफ मेडिकल अधिकारियां का कहना है कि मीडिया के माध्यम से उनके नोटिस में यह मामला आया है। अगर परिजन वाले अपनी शिकायत मुझे व्हाट्सएप पर या मेल के माध्यम से या दूरभाष करे। ऐसे लोगो के खिलाफ विभाग कार्यवाही करेगा। गुप्ता ने लोगां को नसीहत दी है कि उपचार करवाने से पहले निजी अस्पताल की पारदर्शिता अवश्य समझे। सरकारी संस्थाओं में आज मरीजां के उपचार के लिऐ सरकार ने सभी सुविधाएं दे रखी है, पता नही मरीज क्यां भटक जाते हैं।

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