श्राद्ध पक्ष शुरू हो गए हैं। लेकिन, ये शुरू क्यों हुए? कैसे और कब हुए? वैसे तो श्राद्ध वैदिक काल से ही चले आ रहे हैं। देवों के साथ ही पितरों की स्तुति का यहां उल्लेख है। त्रेता युग में राम द्वारा पिता दशरथ के श्राद्ध का उल्लेख है। गया की कहानी उसी से जुड़ी हुई है। महाभारत काल में इसका ज्यादा उल्लेख है।
महाभारत के अनुसार सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि ने अत्रि मुनि को दिया था। इसके बाद अन्य मुनि भी श्राद्ध करने लगे। कुल मिलाकर वेदों के पितृ यज्ञ को ही बाद में पुराणों में विस्तार मिला। परम्पराओं में आज तक ज्यादा कोई बदलाव नहीं हो सके।
शास्त्रों में तीन पक्षियों और तीन वृक्षों को पितरों के समतुल्य माना गया है। तीन पक्षी हैं – कौआ, हंस और गरुड़। तीन वृक्ष हैं – पीपल, बरगद और बेल वृक्ष। कहते हैं पीपल में देवताओं का वास है। पीपल से याद आते हैं गुलजार और श्राद्ध को निमित्त मानकर लिखी गई उनकी यह कविता-
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“कितना कूड़ा करता है पीपल आंगन में। मां को दिन में दो बार बोहारी करनी पड़ती है। कैसे-कैसे यार-दोस्त आते हैं इसके। खाने को ये पीपलियां देता है। सारे दिन शाखों पर बैठे तोते, घुग्घु। आधा खाते, आधा जाया करते हैं। गिटक-विटक सब आंगन में ही फेंक के जाते हैं।
एक डाल पर चिड़ियों ने भी घर बांधे हैं। तिनके उड़ते रहते हैं दिनभर आंगन में। एक गिलहरी भोर से लेकर सांझ तलक, जाने क्या उजला रहती है। दौड-दौड़कर दसियों बार ही सारी शाखें घूम के आती है। चील कभी ऊपर की डाली पर बैठी, बौराई सी, अपने आप से बातें करती रहती है। आस-पड़ोस से झपटी-लूटी हड्डी, मास की बोटी भी, कमबख्त ये कव्वे, पीपल की ही डाल पे बैठ के खाते हैं।
ऊपर से कहते हैं-पीपल पक्का ब्राह्मण है। हुश-हुश करती है मां तो ये मासखोर सब, काएं, काएं, उस पर ही फेंक के उड़ जाते हैं। फिर भी जाने क्यों मां कहती है- आ कागा… मेरे श्राद्ध पे अय्यो, तू! जरूर अय्यो…!”
यही वजह है कि पीपल और काग का श्राद्ध पक्ष में बड़ा महत्व है। कहते हैं इन वृक्षों के नीचे बैठो तो पित्र तृप्त होते हैं। और इन पक्षियों खिलाओ तो भी पित्र तृप्त होते हैं। पितरों के ये सोलह दिन बड़े महत्वपूर्ण होते हैं।
जाने क्यों, लोग इन दिनों शुभ कार्य मुहूर्त से बचते फिरते हैं! जबकि पुरखों के, पितरों के ये दिन तो हमारे लिए सबसे ज्यादा शुभ हो सकते हैं। इन दिनों पुरखों का आशीर्वाद हमारे साथ जो होता है।