एसएफआई ने विश्वविद्यालय उपकुलपति की योग्यता पर उठाएं गंभीर सवाल

उज्जवल हिमाचल ब्यूराे। शिमला

एसएफआई कैंपस सचिव रॉकी ने विश्वविद्यालय उपकुलपति की योग्यता पर सवाल उठाते हुए बताया कि राइट टू इनफार्मेशन एक्ट के तहत जो जानकारी हासिल हुई है, उसके मुताबिक उपकुलपति के पद पर नियुक्ति हेतु यूजीसी के नियमों तथा विश्वविद्यालय अध्यादेश अनुसार 10 वर्ष का अनुभव बतौर प्रोफेसर किसी भी प्राध्यापक के पास होना चाहिए, लेकिन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने फर्जी अनुभव के दस्तावेजों का सहारा लेकर विश्वविद्यालय में नियुक्ति हासिल की है।

इसलिए SFI विश्वविद्यालय इकाई कमेटी मांग करती है कि अयोग्य उपकुलपति प्रोफेसर सिकंदर कुमार पर भर्ती प्रक्रिया के दौरान गलत जानकारी साझा करने के आरोप में IPC की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज होना चाहिए तथा शीघ्र ही उन्हें पद से हटाया जाना चाहिए। इकाई सचिव रॉकी ने बताया कि 01/01 2009 में विश्वविद्यालय के अंदर सिकंदर कुमार को प्रोफेसर पद पदोन्नत किया गया और 2018 के अंदर विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया। इस तरह से सिकंदर कुमार के पास सिर्फ 8 वर्ष 8 महीने 13 दिन का अनुभव था, जो कि अनुभव सीमा 10 वर्ष से एक वर्ष 3 महीने 17 दिन कम है। ऐसे मैं सवाल उठना लाजमी है कि जब विश्वविद्यालय का कुलपति ही भ्रष्ट तरीके से नियुक्त हुआ है, तो विश्वविधालय में फर्नीचर के नाम पर या फिर भर्तियों के नाम पर इस तरह के घोटाले निकल कर सामने आना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है।

इसलिए यह भ्रष्ट उपकुलपति अब प्रदेश सरकार के साथ मिलकर अपने चहेतों को भर्ती करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग व विश्वविद्यालय अध्यादेश के नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है, जिस पर तुरंत प्रभाव से लगाम लगाने की जरूरत है। इसके साथ-साथ एसएफआई कैंपस अध्यक्ष विवेक राज ने सरकार, राज्यपाल तथा माननीय उच्च न्यायालय से इस मसले में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करने की मांग की है, ताकि सच्चाई सबके सामने आ सके और जो हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अंदर लगातार बेरोजगार नौजवानों के साथ धोखा हो रहा है तथा योग्यता को दरकिनार करते हुए एक विशेष विचारधारा के लोगों की भर्तियां शिक्षक तथा गैर शिक्षक वर्ग के अंदर की जा रही है, वो साफ तौर पर दर्शाता है कि विश्वविद्यालय के अंदर सब कुछ अध्यादेश को ताक पर रखकर किया जा रहा है।

एसएफआई ने यह मांग उठाई कि अगर जल्द से जल्द इस मामले में निष्पक्ष जांच नहीं की गई या फिर जो याचिकाकर्ता है, उसको डराने धमकाने या दवाब डालने की कोशिश की गई, तो आने वाले समय के अंदर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय एक बार फिर से छात्र आंदोलन का साक्षी बनेगा और जो धांधलियों का अखाड़ा विश्वविद्यालय को भ्रष्ट कुलपति ने राज्य सरकार के साथ मिलकर बनाया है, उसको बेनकाब करते हुए उग्र आंदोलन विश्वविद्यालय के अंदर किया जाएगा।