काेराेना नियमाें पर भारी पड़ी आस्था की भीड़

उज्जवल हिमाचल। जम्मू

कोरोना महामारी की वजह से इस वर्ष जम्मू के झिड़ी क्षेत्र में लगने वाला उत्तर भारत का सबसे बड़ा किसान मेला नहीं लगेगा। इस मेले को सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा के दिन शुरू होकर सात दिन तक चलना था। प्रशासन की तरफ से इस मेले को रदद करने के बाद भी रविवार को हजारों की संख्या में दूसरे राज्यों के श्रद्धालु लखनपुर पार कर झिड़ी में स्थित बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी के दरबार में पहुंच गए।

प्रशासन ने करीब एक पखवाड़े पहले जब झिड़ी मेले को रद किया था, तो उसने कहा था कि इस संबंध में दूसरे राज्यों के श्रद्धालुओं को भी संबंधित चैनल से जानकारी मुहैया करवा दी जाएगी, लेकिन राज्य के प्रवेशद्वार लखनपुर से आने वाले श्रद्धालुओं का कहना था कि उनको मेला रद होने की कोई जानकारी नहीं मिली थी। जानकारी के मुताबिक, रविवार को सुबह से ही लखनपुर में झिड़ी में बाबा जित्त्तो और बुआ कौड़ी के दरबार में माथा टेकने वाले श्रद्धालु आने लगे थे। इस बार कोरोना महामारी के चलते अंतरराज्यीय बस सेवा बंद है।

उन्हीं ट्रकों को भी राज्य में दाखिल होने दिया जा रहा है, जो माल लेकर आ रहे हैं। इसलिए इस बार श्रद्धालु बसों और ट्रकों से नहीं आए। ऐसे में इस बार दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब व अन्य राज्यों से श्रद्धालु कार से बाबा के दर्शन के लिए आए। लखनपुर में रविवार को दोपहर में पौने एक बजे से शाम पांच बजे तक 4000 हल्के वाहन से करीब 30 हजार श्रद्धालु जम्मू की ओर रवाना हो चुके थे। हालांकि कठुआ के जिला उपायुक्त ओमप्रकाश भगत ने इतनी ज्यादा तादाद में श्रद्धालुओं के आने से इंकार किया है।

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के चलते सरकारी दिशा निर्देशों का पूरी तरह पालन किया जा रहा है। झिड़ी में सात दिन तक लगने वाले किसान मेले के रद होने के बारे में श्रद्धालुओं को जानकारी लखनपुर से राज्य में दाखिल होने के बाद मिली। ऐसे में श्रद्धालु वहां बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी का दर्शन कर पूजा-अर्चना करेंगे। इन सात दिनों में विभिन्न बिरादरियों की मेल भी लगती रही है। दूसरे राज्यों से जो हजारों लोग आए हैं, इनमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जो वार्षिक मेल में शामिल होने आए हैं।

कोरोना महामारी से बचाव के लिए मेला स्थगित करने से स्थानीय लोग निराश हैं। उनका कहना है कि सरकार चुनाव करवा रही है। नेताओं की रैलियां और सभाएं हो रही हैं। ऐसे में बाबा जित्तो की याद में होने वाले मेले आ आयोजन रद करना समझ से परे है। झिड़ी के ग्रामीणों का कहना था कि स्थानीय प्रशासन से मेला रद करने के बारे में सभी राज्यों में सूचना ठीक से प्रसारित नहीं की। यही वजह है कि इसके बाद भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच गए। लोगों ने कहा कि मेला नहीं लग रहा है, लेकिन प्रशासन को परिसर में साफ-सफाई तो करवानी ही चाहिए थी।

आखिर विभिन्न बिरादरियों के लोग अपनी वार्षिक मेल का आयोजन कैसे करेंगे, इस बारे में प्रशासन ने कुछ साफ नहीं किया है। कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष झिड़ी मेला नहीं लगेगा। महज स्थानीय स्तर पर मंदिर में पूजा-अर्चना होगी। धार्मिक आस्था के चलते यदि कोई श्रद्धालु पहुंच जाता है तो उसे मंदिर में दर्शन की अनुमति दी जाएगी, लेकिन भीड़ नहीं जमा होने दी जाएगी। कोरोना से बचाव के लिए जारी सरकारी के दिशा निर्देशों का पूरी तरह से पालन
किया जाएगा।

झिड़ी मेला किसान बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी की याद में आयोजित किया जाता है। बाबा जित्तो माता वैष्णो देवी के परम भक्त थे। कहा जाता है कि बाबा जित्तो ने झिड़ी के इसी क्षेत्र में आकर खेती करने लगे। बंजर भूमि पर खेती शुरू की थी। बाबा की कड़ी मेहनत से भूमि उर्वर हो गई और वहां फसल लहलहाने लगी। एक बार जब गेहूं की अच्छी पैदावार हुई तो खलिहान में लगे गेहूं के ढेर देखकर जमींदार का ईमान डोल गया।

वह उसे अपने घर ले जाने लगा तो बाबा जित्तो ने विरोध किया। गेहूं के लालच में जमींदार ने बाबा की हत्या कर दी। लहूलुहान होकर बाबा गेहूं के ढेर पर गिर गए। पिता के साथ बुआ कौड़ी ने भी शहादत दी। ऐसा कहा जाता है कि जिसने भी वह अनाज खाया, उसके परिवार के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी झिड़ी पहुंचकर अपने पूर्वजों की गलतियों के लिए बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी से माफी मांगने पहुंचते हैं।