उज्जवल हिमाचल। नूरपुर
कांगड़ा (Kangra) के उपमंडल नूरपुर का सरकारी अस्पताल जिसको कि 200 बिस्तर का दर्जा प्राप्त है लेकिन इतने बड़े अस्पताल में ब्लड बैंक की सुविधा अभी तक मरीजों को नहीं है जिसके चलते आपात स्थिति में मरीज़ों के रिश्तेदारों को ब्लड लेने और रक्तदान करने के लिए टांडा मेडिकल कॉलेज या फिर पंजाब में सिविल अस्पताल पठानकोट के लिए भागना पड़ता है।
यहां मरीजों के रिश्तेदारों का बहुत सारा समय खर्च हो जाता है जिससे हमेशा अनहोनी होने की संभावना बनी रहती है। चुनावों के दौरान तो विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी इस अस्पताल के विषय में बड़ी-बडी घोषणाएं करते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद ऐसे विषयों पर कोई आवाज उठाना ही भूल जाते हैं।
यह भी पढ़ेंः हिमाचलः आम लोगों की समस्याओं को दें सर्वाेच्च प्राथमिकताः इंद्र दत्त लखनपाल
नूरपुर के सिविल अस्पताल की बात की जाए तो उक्त अस्पताल नूरपुर के साथ-साथ इंदौरा, फतेहपुर, ज्वाली और चंबा जिला के अधिकांश क्षेत्रों के लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवा का एक प्रमुख केंद्र है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित इस अस्पताल में अनेक लोग सड़क हादसों का शिकार होकर पहुँचते हैं, तो गर्भवती महिलाओं को भी अक्सर खून की आवश्यकता पड़ती है लेकिन इतने बड़े अस्पताल में ब्लड बैंक की सुविधा न होने की कमी अक्सर आड़े आती है।
इस दौरान मरीज़ और उनके रिश्तेदारों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खूनदान करने में नूरपुर और आसपास के क्षेत्रों के लोगों द्वारा प्रति वर्ष हजारों यूनिट रक्तदान किया जाता है लेकिन इसे नूरपुर स्थित सरकारी अस्पताल में रखने और न ही रक्तदान करने की कोई सुविधा है।
जिसके चलते आपात स्थिति में खून लेने पठानकोट के सिविल अस्पताल या फिर टांडा मेडिकल कॉलेज जाना पड़ता है। इस मामले में ब्लड डोनर क्लब नूरपुर के अध्यक्ष राजीव पठानिया का कहना है कि सरकार को नूरपुर अस्पताल में ब्लड बैंक की सुविधा का प्रावधान करना चाहिए। काफी सालों से यह समस्या नूरपुर में चिरकाल से चली आ रही है। उधर कुछ एनजीओ संस्थाओं का कहना है कि सरकार इस मामले में यह काम किसी संस्था को अस्पताल में खोलने का समाधान जनहित में करे।