गणेश जी की पूजा के समय जानिए क्यों कहते हैं “गणपती बप्पा मोर्या”

उज्जवल हिमाचल। डेस्क

पिछले कल से 10 दिवसीय गणेश उत्‍सव का आगाज हो गया है और देभ भर में अगले दिनों तक बप्‍पा की धूम रहेगी। भक्त उत्साह और जोश से गणपति बप्पा मोरया के नाम का जयघोष करते हैं और गणेशजी जन्‍मोत्‍सव मनाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि गणेशजी को बप्पा मोरया क्यों कहते हैं। दरअसल इसके पीछे कई रोचक कहानियां हैं जिनसे गणेशजी की भक्ति जुड़ी हुई है। दरअसल गणेश उत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र से हुई है जिसे आरंभ करने वाले लोकमान्य तिलक हैं। महाराष्ट्र से यह धीरे-धीरे पूरे देश का उत्सव बन गया। महाराष्ट्र में पिता को बप्पा कहते हैं। गणपति को भक्तों ने धरती वासियों के पिता के रूप में माना और बप्पा कहना शुरू कर दिया इस तरह गणपति बप्पा कहलाने लगे। लेकिन इनके मोरया कहलाने की कहानी बेहद दिलचस्प है।

गणेश पुराण में गणेशजी की सवारी मोर बताया गया है। मोर पर सवार होने के कारण इन्हें मयूरेश्वर भी कहते हैं। मयूर इनकी सवारी होने के कारण इन्हें मोरया कहा जाता है। लेकिन मयूरेश्वर और मोरया के साथ एक और रोचक कथा जुड़ी हुई है जिसका संबंध महाराष्ट्र के मयूरेश्वर मंदिर और मोरया गोसावी नामक एक गणेश भक्त से है।

करीब 600 साल पहले की बात है महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव में एक गणेश भक्त हुए जिनका नाम मोरया गोसावी था। ऐसी मान्यता है कि मोरया गोसावी भगवान गणेश के अंश थे। इनका जन्म 1375 ई. में हुआ था। इनके पिता वामन भट्ट थे और इनकी माता का नाम पार्वती बाई था। इनके माता-पिता गणेशजी के भक्त थे, इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने इनके घर जन्म लेने का वरदान दिया।

सपने में आए बप्‍पा और दिया वरदान
बचपन से ही मोरया गोसावी मयूरेश्वर गणेश की भक्ति में लीन हो गए और हर गणेश चतुर्थी के दिन चिंचवाड़ से 95 किलोमीटर दूर पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए जाते थे। बचपन से लेकर 117 साल तक यह सिलसिला चलता रहा। वृद्धावस्था आ जाने पर इनके लिए इतनी लंबी दूरी तय करके मयूरेश्वर मंदिर पहुंचना कठिन हो गया। एक दिन बप्पा इनके सपने में आए और कहा कि अब तुम्हें मयूरेश्वर मंदिर तक आने की जरूरत नहीं है। कल जब तुम स्नान करके कुंड से निकलोगे तो तुम मुझे अपने पास पाओगे।

इनका सपना सच हुआ। जब मोरया स्वामी स्नान करके निकलने लगे तो इनके पास गणेशजी की वैसी ही छोटी सी प्रतिमा थी जैसा उन्होंने सपने में देखा था। इन्होंने चिंचवाड़ में उस मूर्ति की स्थापना की और धीरे-धीरे भक्त और भगवान दोनों की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलने लगी। लोग गणेशजी के साथ उनके भक्त का नाम लेकर जयकारे लगाने लगे। लोगों में भक्त और भगवान का अंतर मिटता चला गया और दोनों एक लगने लगे। भक्तों ने गणपति को गणपति बप्पा मोरया के नाम से पुकारना शुरू कर दिया।

यहां से आरंभ होती है अष्ट विनायक मंदिर की यात्रा

ये हैं 8 प्रमुख अष्‍टविनायक मंदिर
इसके अलावा पुणे के मोरगांव का मयूरेश्‍वर मंदिर, अहमदनगर के सिद्धटेक का सिद्धिविनायक मंदिर, रायगढ़ के पाली का बल्‍लालेश्‍वर मंदिर, रायगढ़ के कपोली का वरदनायक मंदिर, पुणे के थेउर का चिंतामणि मंदिर, पुणे के ही लेनयाद्री का गिरिजात्मज मंदिर, पुणे के ओजर का विघ्नेश्वर मंदिर और पुणे के रंजनागांव का महागणपति मंदिर, ये सभी महाराष्‍ट्र के 8 प्रमुख अष्‍टविनायक मंदिर हैं।

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