पालमपुरः चौसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एच. के. चौधरी ने प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर के प्रयासों की सराहना की है जिनका नवाचार सगुना पुर्नजीवित तकनीक एसआरटी कृषक समुदाय की आजीविका को बढ़ाने में योगदान देगा। प्रोफेसर एच. के. चौधरी भारत के जैविक कृषि समाज ओएएसआई की आभासी व्याख्यान श्रृंखला के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे।
कुलपति, जो एसआरटी के मुख्य संरक्षक हैं, जैविक कृषि और प्राकृतिक खेती विभाग के सहयोग से इस तरह के आयोजनों के लिए एसआरटी के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के पादप आनुवंशिक संसाधनों के महत्व पर भी प्रकाश डाला और चंद्रशेखर को विश्वविद्यालय में एसआरटी के क्षेत्र में अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया।
इससे पहले, कृषि रत्न और कृषि भूषण पुरस्कार विजेता चंद्रशेखर भडसावळे ने पुनर्जीवित कृषि ;आर, पर एक आभासी व्याख्यान दिया। जो भोजन की कमी और ग्लोबल वार्मिंग की समस्याओं पर काबू पाने का एकमात्र आसान तरीका है और एक वृत्तचित्र के माध्यम से एसआरटी के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने पारंपरिक खेती के साथ एसआरटी के निष्कर्षों की तुलना भी की। उन्होंने मृदा स्वास्थ्य और पर्यावरण को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषक समुदाय की खुशी से जुड़ा हुआ है। कृषि महाविद्यालय के डीन डॉ. डी. के. वत्स और अनुसंधान निदेशक डॉ.एस.पी. दीक्षित ने भी इस दौरान अपने विचार रखे।
ओएएसआई के प्रधान व जैविक और प्राकृतिक खेती के विभागाध्यक्ष डॉ. जनार्दन सिंह ने कहा कि जैविक और प्राकृतिक खेती टिकाऊ और सुरक्षित भोजन का सबसे अच्छा तरीका है। उनका विभाग जून से एसआरटी के सानिध्य में जैविक और प्राकृतिक खेती के पहलू पर आभासी व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन कर रहा है।
जहाँ बातचीत और विचार मंथन के माध्यम से देश के वैज्ञानिक, किसान, गैर सरकारी संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता आदि विभिन्न हितधारकों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से अपने विचार, ज्ञान और अनुभव सांझा करते हैं। श्रृंखला के दौरान डॉ. गोपाल कतना और डॉ. रामेश्वर ने भी विचार व्यक्त किए।
पालमपुर ब्यूरो।
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