चहेतों के लिए पिछले पांच साल बन गए स्वर्णिम काल: संजय पराशर

-कैप्टन संजय ने पुननी, शांतला, कटोह टिक्कर व गुडारा चपलाह में आयोजित किए जनसंवाद कार्यक्रम

रक्कड़: संजय पराशर ने कहा है कि जसवां-प्रागपुर क्षेत्र में गरीबों और बेरोजगारों से अन्याय करने वालों को क्षेत्र की जनता कभी माफ नहीं करेगी। सियासत के सफर में उनका किसी से व्यक्तिगत द्वेष नहीं है, लेकिन क्षेत्र की जनता के हितों की रक्षा करने के लिए उन्हें किसी भी मंच पर संघर्ष करना पड़े तो वह पीछे नहीं हटेंगे।

शनिवार को शांतला, पुननी, कटोह टिक्कर, भरोजी जदीद और चपलाह पंचायतों में आयोजित जनसंवाद कार्यक्रमों में पराशर ने स्थानीय वासियों से रूबरू होते हुए कहा कि रोजगार मंत्री अगर रोजगार की बात न करके अन्य मुद्दों की आड़ में सवालों से बचना चाहे तो समझा जा सकता है कि पिछले पांच वर्षों मे बरोजगारों के साथ बहुत बड़ा मजाक हुआ है।

पराशर ने कहा कि कोरोनाकाल आने के बाद रोजगार के अवसर सीमित हो रहे थे तो क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। अजीब संयोग यह भी था कि रोजगार मंत्री के पास उद्याेग का भी दायित्व था, लेकिन नए उद्योग स्थापित न होने से यहां भी बेरोजगार युवा खुद को ठगा सा महसूस करते रहे।

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संजय ने कहा कि पिछले पांच वर्ष में बेरोजगारी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती रही, लेकिन रोजगार सृजन काे लेकर कार्य शून्य ही रहा। पराशर ने कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि इस पार्टी के नेता भी जमीनी स्तर की लड़ाई मात्र सोशल मीडिया पर ही पोस्ट करके करते रहे। गरीबाें के जर्जर व जीर्ण-शीर्ष अवस्था में पहुंच चुके मकानों को देखकर किसी को तरस नहीं आया।

यह अलग बात है कि चहेतों के लिए पिछले पांच साल एक तरह से स्वर्णिम काल जैसे बन गए। जबकि क्षेत्र का गरीब और गुरबत के दलदल में धंसता चला गया। संजय ने कहा कि जसवां-प्रागपुर क्षेत्र की भावी पीढ़ी के भविष्य से भी खिलवाड़ किया गया। जब कोरोनाकाल में स्कूल बंद थे और बच्चों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन तक नहीं थे।

किसी तरह से अभिभावकाें न बच्चाें के लिए मोबाइल सेट का इंतजाम किया तो नेटवर्क समस्या से बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करने में भी असमर्थ थे। ऐसे में उस समय जसवां-प्रागुपर के नियति-नियंता मूकदर्शक बनकर तमाशा देखते रहे और विद्यार्थियों व उनके मां-बाप की सहायता करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

लेकिन जब चुनाव नजदीक आ गए तो इन लोगों के अंदर का दानवीर कर्ण अचानक जाग गया और उन गांवों का रूख किया, जहां पूरे पांच वर्ष तक कभी दर्शन नहीं दिए थे। पराशर ने कहा कि किसी भी क्षेत्र के उत्थान के लिए विजन और सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है।

संजय ने कहा कि शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य को सर्वोपरि रखकर काम किया होता तो आज उन लाेगों को वोट मांगने की आवश्यकता नहीं होती और खुद पराशर भी उनके संग चलकर ऐसे कार्यों की दुहाई देता। लेकिन सच यही है कि ऐसे तंत्र की विफलता के कारण ही उन्हें राजनीतिक मैदान में उतरना पड़ा है और अब जसवां-प्रागपुर और स्थानीय वासियों के लिए वही अपना सर्वस्व दांव पर लगाने को तैयार हैं।

ब्यूरो रक्कड़

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